________________
चौथा जन्म
५३
इन्छा करे तो वह विवेकी नहीं कहा जा सकता । इसी प्रकार संसार - सागर में डूबने वाला प्राणी धर्म- सेवन का परित्याग कर विषयोपभोग में रत होता है तो वह भी विचारवान् नही कहला सकता । कोई चिन्तामणि पाकर कौवे उड़ाने के लिए उसे फैकदे तो आश्चर्य की बात है । हे भद्र, इस पौद्गलिक, विषमय और क्षणिक सुख के मोह में पड़कर मोक्ष के असीम और शाश्वत सुख को खो बैठना कौन-सी बुद्धिमानी है ? देखो -
जहा कांगणि हेडं, सहस्सं हारए नरो । अपच्छं अगं भोच्चा, राया रज्जं तु हारए ॥ -निर्ग्रन्थ-प्रवचन
अर्थात् कुछ व्यापारी व्यापार के लिये विदेश गये । वे सव हजार-हजार मुहरे कमा कर घर की तरफ लौटे । लौटते समय मार्ग में उन्होने किसी जगह भोजन-सामग्री खरीद कर भोजन बनाया । भोजन करने के पश्चात् एक व्यापारी ने दाल-आटे का हिसाव लगाया । उसे मालूम हुआ कि दूकानदार ने एक दमड़ी कम लौटाई है । वह अपने साथियों से बोला- 'भाइयो, जरा ठहरिये । दूकानदार ने हम लोगों को ठग लिया है, एक दमड़ी कम लौटाई है ।' उसकी बात सुन साथी बोले- 'अरे दमड़ी में क्या धरा है ? एक दमड़ी चली जाने से हम कंगाल तो हो न जाएँगे ! वह भी एक दमड़ी से लखपति न बन जाएगा । इतने के लिए अपना समय क्यों गवाऍ ?' पहला व्यापारी कहने लगा'भाई वाह, तुम भी कैसे वणिक् हो ? 'चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय' यह तो वणिक् - शास्त्र का आदर्श वाक्य है । इसे भूल जाओगे तो काम कैसे चलेगा ? मै तो हर्गित दमड़ी न जाने दूँगा ।"