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पार्श्वनाथ
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हो सकते हैं । केशी स्वामी के प्रश्नों से यह कल्पना कर लेना, कि उन्हें इन प्रश्नों का उत्तर ज्ञात न था, एक हास्यास्पद बात है । आजकल भी अनेक विद्वान् दूसरे विद्वानो से अनेक प्रश्नों पर वीतराग चर्चा करते हैं। क्या इससे यह परिणाम निकलना संगन होगा, कि पृष्टव्य विषयों का अब तक निश्चय नहीं है और वे अंधकार मे है ? भगवान् महावीर और उनके प्रथम गणधर श्री इन्द्रभूति गौतम के अनेक प्रश्नोत्तर आज सूत्रों मे विद्यमान है । अनेक प्रश्न विलकुल सामान्य है, साधारण व्यक्ति भी उनका समाधान कर सकता है। तो क्या यह समझना बुद्धिमत्तापूर्ण कहा जा सकता है, कि गौतम सामी को सिद्धान्तों का सामान्य भी वोध न था ? कदापि नहीं । इस प्रकार निश्चय है, कि श्री केशी सामी और गौतम स्वामी के प्रश्नोत्तरों से यह सिद्ध नहीं होता, कि भगवान् महावीर ने जैन धर्म के पार्श्व-काल मे अनिश्चित सिद्धान्तो का निश्चित रूप दिया था ।
पार्श्व सघ और वीर-संघ के सामान्य शाब्दिक अतएव काल्पनिक भेद को वृहत् रूप देकर विधर्मी लोग दोनों में मतभेद एवं विरोध की नींव डालना चाहते होगे । दोनों संघो को वास्तविक मतभेद न होने पर भी उन संघो के सामान्य अनुयायी विरोधियों के बहकावे मे आने लगे होंगे । अतएव दोनों संघों के प्रधान महापुरुषों ने मिलकर और तत्याचर्चा करके सर्वसाधारण को बता दिया, कि दोनों मे कुछ भी, वास्तविक मतभेद नहीं है । केशी स्वामी के प्रश्न गौतम स्वामी के उत्तर और फिर उनकी केशी स्वामी द्वारा की हुई अनुमोदना, इन से यही निष्कप निकालना सुसगत प्रतीत होता है । दोनों मे मतभेद होना तो यह गौतम के छोटे से उत्तर से कदापि नहीं मिट सकता था । उस