________________
परिशिष्ट
२७१
*AM WI
थे और भगवान् महावीर के उपदेश में एक प्रठन्नी की दो चवन्नी के समान दोनों महाव्रत अलग-अलग गिने जाते है । दोनों के उपदेश में, वस्तुस्वरूप में कुछ भी भिन्नता या विरोध नहीं है, यह तो केवल गणना का काल्पनिक भेट है। जो शिष्यों को समझाने के सुभीते के लिए अपनाया गया है । भ० पार्श्वनाथ ने यदि ब्रह्मचर्य को धर्म माना होता तो वस्तु के स्वरूप में भेद कहलाता, परन्तु ऐसा उपदेश कोई तीर्थंकर तो क्या, सामान्य विद्वान् भी नहीं दे सकता । अतएव चातुर्याम और पंचयाम के आधार से दोनों तीर्थकरों के उपदेश मे कुछ भी भेद नहीं है ।
शंका- कोई कोई ऐसा मानते हैं, कि श्री केशी श्रमण ने गौतम स्वामी से वही प्रश्न किये है, जिनके विषय में उन्हें निश्चय न था । भगवान् पार्श्वनाथ ने उन विषयों का स्पष्टीकरण नहीं किया था । महावीर स्वामी ने अपने उपदेश में नई बातें सम्मिलित की है । क्या यह सत्य है ?
समाधान- यह कल्पना निराधार है। अज्ञान वस्तु को जानने के लिए ही प्रश्न नहीं किये जाते । श्री केशी श्रमण पार्श्व तीर्थ के प्रमुख आचार्य थे, श्रुत के पूर्ण ज्ञाता और अवधि ज्ञानी थे । उन्हें इन प्रश्नों के उत्तर न मालुम हों यह कल्पना भी नही की जा सकती । अतएव उनके प्रश्न करने का आशय कुछ और ही होना चाहिए । प्रश्न पूछने के अनेक आशय हो सकते हैं । जैसेउत्तरदाता की उत्तर देने की शैली का अध्ययन करने के लिए प्रश्न किये जाते है ! पृष्टव्य विषय मे संदेह न होने पर भी उस विषय मे किसी नवीन युक्ति को जानने की अभिलाषा से भी प्रश्न किये जा सकते हैं। सर्वसाधारण को वस्तु स्वरूप का ज्ञान कराने के उद्देश्य से भी प्रश्न किये जाते है । इसी प्रकार अन्य प्रयोजन भी
...