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पाश्वनाथ
समस्त गुणों में समानता नहीं है। आत्मा ज्ञानमय और सुखसय है, जड मे ज्ञान और सुखका सर्वथा अभाव है। इसी प्रकार यदि परमात्मा और जीवात्मा में मौलिक भेद होता तो परमात्मा के समस्त गण आंशिक रूप से जीवात्मा मे न होते। किन्तु दोनों के गुण एक हैं अतः दोनों मे मौलिक भेद नहीं है। जो भेद है वह तो मात्रा का भेद है। परमात्मा मे गणों का परिपूर्ण विकास हो चुका है और जीवात्मा मे गुण अवतक आच्छादित हो रहे है। आत्मा शनैः शनैः विकाश करता हुश्रा अपने गुणो के परम प्रकर्ष को प्राप्त कर लेता है तब वही परमात्मा की कोटि में जा पहुंचता है । इस प्रकार प्रत्येक आत्मा मे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी बनने की शक्ति विद्यमान है। ____ जो एण्यशील पुरुष-पङ्गव आत्म विकास के पथ का _अनुसरण करते है उन्हे भगवान पार्श्वनाथ की भांति ही परमास्मपद की प्राप्ति होती है।
समवसरण भगवान् को जब केवल ज्ञान उत्पन्न हुआ तो नर-नारी और देव-देवियोने खूब उत्सव मनाया। उस समय समवसरण की रचना की गई। समवसरण खव विशाल, सुन्दर और दर्शनीय था। समवसरण के भीतर अशोक वक्ष के नीचे एक सिंहासन पर प्रभु विराजमान हुए। उनके मस्तक पर एक के ऊपर दूसरा
और दूसरे के ऊपर तीसरा, इस प्रकार तीन छन सुशोभित हुए। भामंडल की शोभा अनूठी थी । महेन्द्रध्वजा फडकती हुई भगवान् की अपूर्व कर्म-विजय की सूचना दे रही थी। आकाश मे देव दुन्दभि बजा रहे थे।