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________________ चौथा अध्याय । आओ, वेठो, मेरी बात सुनो । बताओ कि तुम्हारा गुरु कौन हैं और कौन गोत्रमें तुम्हारा जन्म हुआ है ? तुमने कौन कौन शास्त्र पढ़े या देखे हैं और किस निमित्तसे तुमने यह वात जानी है ? तुम्हारा नाम क्या है ? इनके उत्तरमें उस निमित्तज्ञने कहा कि कुंडलपुर नाम नगरमें सिंहरथ नाम राजा है। उसके पुरोहितका नाम सुरगुरु है । उसका मै शिष्य हूँ । मैने विजय वलभद्रके साथ दीक्षा लेकर अष्टांग निमित्त-शास्त्रोंको पढ़ा है । अन्तरिक्ष, भौम, अंगंग, लक्षण, व्यंजन, छिन्न, स्वर और स्त्रनं । इनके लक्षण और भेद मुझे सब मालूम हैं। कुछ समय वाद भूखसे व्याकुल हो मैंने दीक्षा छोड़ दी और हमेशा दुखी होकर इधर उधर घूमने-फिरने लगा। कुछ काल बाद में पद्मिनी खेट नाम नगरमें आया । वहाँ सोमशर्मा नाम मेरा मामा रहता था । उसकी स्त्रीका नाम हिरण्यलामा था। उसके चंद्रानना नामकी एक कन्या थी । उस कन्याका मेरे मामाने मेरे साथ विवाह कर दिया और साथमें कुछ धन भी दिया । तब तो मैंने सब चिन्ता .छोड़ दी और धन कमाने आदि वातों पर कुछ भी ध्यान न दे निमित्त-शास्त्रके अध्ययनमें अपना मन लगाया । धीरे धीरे मेरे मामाका दिया हुआ जब सव धन खर्च हो चुका तव मेरी स्त्री वहुत खिन्न हुई और एक दिन भोजनके समय उसने क्रोधभरे शब्दोंमे मुझसे कहा कि क्या यह धन तुम्हीने कमाया था! यह कह कर उसने क्रोधके साथ निमित्त ज्ञानकी बातें जानने के उपयोगमें आनेवाली कोड़ियोंको मेरे सामने फैक दी, जो वहीं पड़ी हुई थीं । उनसे मैंने यह निश्चय किया कि पोदनापुरके नरेशके मस्तक पर वज्रपात होगा । और जो भोजन करनेकी स्फटिककी थाली में प्रतिविम्बित मेरी मूर्ति पर सूरजकी किरणें पड़ रही थी तथा उसी समय मेरी मूर्ति पर मेरी स्त्रीने हाथ धोनेके जलकी जो धारा डाल दी थी उससे मैंने यह जाना कि मुझे अभिषेक पूर्वक राज-लाभ होगा। मेरा नाम अमोघजिह्व है । मैंने ऊपर कहे हुए निमित्तसे जान कर ही आपको सूचना दी है। दूसरा और कोई कारण नहीं। यह सुन राजाने उसे तो विदा कर दिया और बाद कुछ सोच-विचार कर मंत्रियोंको बुलाया। उनसे उसने कहा कि एक बड़ा भयंकर समाचार है ! और वह यह है कि आजसे सातवें दिन पोदनापुरके राजाके ऊपर वज्रापात होगा! यह सुन सुमति मंत्री बोला कि इसके लिए कोई चिन्ता करनेकी बात नहीं है । आपको हम एक लोहे के सन्दूकमें बन्द करके समुद्रके भीतर छोड़ देंगे, इससे आपकी रक्षा हो जायगी। इस पर सुबुद्धिने कहा कि समुद्रमें तो मगर मच्छके निगल जानेका
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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