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चौथा अध्याय। त्रिपृष्टने जो कुछ फदा था वह सब ज्योंका त्यों कह सुनाया, जिसे सुन कर अश्वग्रीवके शोधका पारा बहुत ही चढ गया और उसने रणभेरी बजवा दी। संसार भरंग फैलनेवाले भेरीके गन्दको मुन कर सभी राजा-गण अश्वग्रीवकी सेवामें आ उपस्थिन हुए। पोंकि चकवन के शोधके मारे सभी भयभीत हो उरके भारसे दन जाते है । पृथ्वी पर कोई भी सुग्य-चैन से नहीं रह सकता ।
इसके बाद अश्वग्रीव चतुरंगसेनाके साथ स्थावर्त पर्वतकी ओर रवाना हुआ। इस समय दो दिशायें आग उगलने लगा । उल्कापात होने लगा और पृथ्वी फाँपन लगी । अवको आया जान प्रजापमिके दोनों पुत्र भी आ पहुँचे । दोनों भोग्की रेनामें बना भयंकर युद्ध हुआ । यह देख त्रिपृष्ठको बहुत कोप आया। यह आगला हो गया और अश्वग्री पर स्वयं ही जा चढ़ा । उधरसे अवग्रीव . भी पहिले जन्म के बैरके कारण लदनेको तयार ही था । दोनीने खब वाणोंकी परसा की, जिससे सारी सेना विल्कुल बाणमय देस पड़ने लगी। इस तरह उन दानाम सामान्य शखों द्वारा बहुत ही युद्ध हुआ, पर जब एक दुसरेको कोई भी न जीत सका तब उन शक्तिशालियाने विधायुद्ध करना आरम्भ किया। विद्यायुद्ध करते हुए भी पान देर हो गई और अश्वग्रीवका विद्यावल व्यर्थ जाने लगा। तब बांध माफर अन्यग्रीवने वैरी पर चा चलाया । चक्र तीन प्रदक्षिणा कर दैवयोगसे निपट के साथ आगया । अन्तमें उस चली बिपृष्ठने उसी चक्र द्वारा अम्बग्रीवकी गर्दन काट कर उसे घराशायी बना दिया । इस प्रकार विजय और त्रिपृष्ठ आध भरवक्षेत्र अधिपति हुए और विद्यावल, राजा-महाराजा, व्यंतर
और मागध सभी उनकी सेवा करने लगे । इसके बाद त्रिपृष्ठने ज्वलनजटीको दोनों श्रेणियोंका स्वागी बना दिया । सच है बड़े पुरुपोंके आश्रयसे सभी प्रभुता प्राप्त हो जाती है; कुछ दुर्लभ नहीं रह जाता।
इसके बाद पूर्व पुण्यके उदयसे त्रिपृष्ठ नारायणको खंग, शर्ख, धनुंप, चक्र, दंडे, शक्ति, गदा ये सात रत्न और विजय वलभद्रको रत्नमाला, गंदा, मुशल
और हल ये चार रत्न प्राप्त हुए। इन रत्नोंकी हजारों देवतागण सेवा करते हैं । विपृष्ठकी सोलह हजार रानियाँ थीं, उनमसे पट्टरानीका सौभाग्य स्वयंप्रभाको ही माप्त था । विजयकी आठ हजार रानियाँ थीं । वे सभी भीलवती, रूपवती और गुणों की खान थी । इसके बाद प्रजापति राजाने भी अपनी ज्योतिर्माला नाम पुत्रीका विवाह बड़े भारी गट-घाटसे ज्वलन