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________________ ४२ पाण्डव-पुराण । भी युद्धस्थलमें शत्रुसे जा भिड़े । इसी समय सूर्यमित्र, सुकेतु, जयवर्मा, श्रीधर और देवकीर्ति आदि मुकुटवद्ध राजा तथा और और नाथवंशी, सोमवंशी राजा जयसे आ मिले । इनके सिवा अर्द्ध विधेशोंको साथ लेकर मेघमम नाम विद्याधर भी जयकी सहायताको आया । तात्पर्य यह कि जयका पक्ष भी वहुत प्रवल था । इस वक्त मेघेश्वर (जय ) ने एशरव्यूह रचा, जिससे उनकी अपूर्व ही शोभा होगई । यह देख अर्ककीर्तिने चक्रव्यूहकी रचना की और जयके मकरव्यूहको भेद डाला | इसके बाद सुनीम आदि विद्याधरोंने, जो अर्ककीर्तिके पक्षमें थे, तायव्यूहकी रचना की । इसी समय अष्टचंद्र आदि विद्याधर लोग भी अर्ककीर्तिकी ओर आ पहुँचे । रणस्थलमें एक दूसरे योधाओं के साथ प्रचंड युद्ध होने लगा । दोनों ओरके वाण शत्रुओंके हृदयको भेदने लगे । योधाओंमें दंडों, तलवारों, भालों, गदों, शरों, सूशलों, हलों और शिलाओं के द्वारा तथा एक दूसरेके वालों की खेंचातानीके द्वारा खूब ही घमासान युद्ध हुआ। इधर अर्ककीर्तिने जलती हुई भागकी शिखाके समान तीक्ष्ण वाणोंके द्वारा शत्रुदलके वीरोंके हृदयोंको छेद-भेद डाला, जिसको देख कर जयकुमारने अपने छोटे भाइयोंको साथ ले वजकांड धनुपके द्वारा भीपण युद्ध किया और थोडीसी देरमें ही शत्रुदलके वीरोंको शस्त्र प्रहार द्वारा तहस-नहस कर दिया जिस तरह कीर्ति और विजयका अभिलाषी वादी शास्त्रकी युक्तियों द्वारा प्रतिवादीको परास्त कर देता है । इसके बाद आकाशमें जाकर जयके पक्षके विद्याधरोंने शत्रुपक्षके विद्याधरोंका खूब ही तिरस्कार किया और वे विद्यायुद्धके अभिमानसे हमेशाके लिए युद्धकी प्रतिज्ञा करने लगे। उन्होंने कहा कि हम हमेशा तुम लोगोंसे युद्ध करनेको तैयार हैं। कभी पीछा पैर देनेवाले नहीं । इस वक्त नीचेसे भूमिगोचरी और ऊपरसे विद्याधर लोग वरावर वलसे बाणोंको छोड़ रहे थे, जिससे कि वे बीच में ही एक दूसरके मुहॅसे टकरा कर रह जाते थे; किसीको हानि नहीं पहुंचा पाते थे । उनके विद्यावलका यह एक नमूना है। इसके बाद जयकुमारने भाइयों सहित यमका रूप बनाया और वे सबके सब घोड़ों पर चढ़ कर सिंहकी नॉई शत्रुदलके साथ युद्ध करने लगे। इस समय जयकी जीत होने लगी, जिसको देख कर और और सभी युद्धकुशल बीर उन पर एकदम टूट पड़े। जिस तरहसे आग पर पतंगे एकदम आ गिरते हैं। इसके बाद हाथियोंकी सेनाको लॉघ कर अर्ककीर्तिने जयके ऊपर आक्रमण किया । जयने भी विजयार्द्ध नामके गजोत्तम पर सवार हो उसके साथ युद्ध आरंभ किया कुछ भी उठा न रक्खा।
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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