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thereal अध्याय ।
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भी अपना जोर चलाया और धनंजयके धनुषको वे काम कर दिया । बाद पार्थ दिव्य अस्त्र हाथमें लेकर और दिव्यास्त्र के रक्षक देवोंसे बोला कि हे दिव्य अस्त्र और दिव्य देहके धारक शरासन, तुम सब सुनो कि यदि तुममें कुछ सत्य है, हम सच्चे कुल रक्षक हैं और युधिष्ठिरमें कुछ धर्म है तो तुम इस वैरीका विध्वंस कर दो । यह कह कर उसने अपने दिव्य - अत्र को छोड़ा और क्षणभर में ही कर्णके मस्तकको घड़से जुदा कर दिया । देखते देखते वीर कर्ण धराशायी हो गया ।
इस प्रकार चंपा नगरीके वीर राजा कर्णको धराशायी होता देख कर कौरव रोने-विलाप करने लगे कि आज आकाशसे सूरज ही पृथ्वी पर पड़ गया है और सदाके लिये अँधेरा कर गया है । हा कर्ण, तुम्हारे बिना अब रणमें अर्जुनका सामना और कौन करेगा । हममें ऐसा शक्तिशाली कोई नहीं जो उस arrar सामना करे और उसे नीचा दिखावे । इसी समय उधर दुःशासन आदि राजे युद्ध-स्थल में आ उपस्थित हुए । उन्हें अकेले भीमने ही यमके घर पहुॅचा दिया; जैसे कि बहुत से वृक्षोंको एक आगका कण खाकमें मिला देता हैजला डालता है । यह देख नृप गण कहने लगे कि देखो, जिस तरह जंगलमें क्रुद्ध हुआ एक ही सिंह बहुतसे गजोंको धराशायी करता जाता है उसी तरह भीम भी इन कौरवों को धराशायी करता जा रहा है । इसे धन्य है ।
इसी समय किसीने दुर्योधनके पास जाकर उससे उसके बान्धवकी मृत्युका दाल कहा, जिन्हें कि भीमने मारा था, जिनकी मृत्यु दुर्योधनको अत्यन्त दुःख देनेवाली थी। उनका हाल सुन कर उस पुरुषके वचन दुर्योधनके कानोंमें ऐसे लगे जैसा कि मस्तक पर वज्र गिर पड़ता है। उससे वह बड़ा भयभीत हुआ । उसका चित्त व्याकुल हो उठा । इसके बाद वह वहाँ गया जहाँ कि उसके भाई मरे हुए पड़े थे । उन्हें देख सारथीने उससे कहा कि राजन, उद्धत शूरवीर होने पर भी देखिए ये कैसे मरे पड़े हैं ! दुर्योधनने भी उन्हें देखा । देखो, जो ऐसे विकराल थे कि ग्रह-भूत-पिशाच आदिके मांससे वप्त होते थे वे ही आज मृत्युके ग्राम होकर पृथ्वी पर लेटे हुए हैं । यह दशा देख सारथीने दुर्योधनसे कहा कि महाराज, इस समय अव युद्धका मौका नहीं है आप युद्धकी इच्छा छोड़ कर घर लौट चलिए । यह सुन कर दुर्योधनको वड़ा क्रोध आया और वह आपेसे बाहिर हो गया । यह देख सारथीने रोपमें आकर कहा कि महाराज, प्रभो, आपने न पांडवोंको पहिले उनके