SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दूसरा अध्याय । दूर करते थे । चौदहवें कुलकर नाभिराजाका ब्याह मरुदेवीके साथ हुआ । इसी समयसे इनके रहनेके लिए इन्द्रने आकर अयोध्या नगरीकी रचना की और कुवेरको आज्ञा की कि यहाँ पर भगवान आदिनाथ जन्म लेंगे, इस लिए तुम अभीसे यहॉ रत्नोंकी बरसा करो । इन्द्रकी आज्ञाको शिरोधार्य कर अबेरने वहाँ बराबर पंद्रह महीने रत्नोंकी बरसा की तथा देवियोंने आकर गर्भशोधन आदि क्रियायें की। इसी समय सर्वार्थसिद्धि नाम विमानसे एक देव चय कर अपाढ़ वदि दोजके दिन मरुदेवीके गर्भमें आया । भगवानको गर्भ धारण किये हुए मरुदेवी ऐसी जान पड़ती थी मानों रत्नोंको भीतर रखनेवाली पृथ्वी ही है । तात्पर्य यह कि वह उस वक्त रत्नोंकी खानिकी नॉई शोभती थी । भगवानकी. माता मरुदेवीकी छप्पन्न देवकुमारियाँ सदा काल सेवा करती थीं । उनका काल अमन-चैनके साथ वीतता था । जप आसानीसे नौ महीने पूरे हो गये तब उन्होंने चैत सुदि नौमीके दिन भगवान आदिनाथ प्रभुको जन्म दिया; जैसे सीप अमूल्य मोतियोंको पैदा करती है । आदिनाथ प्रभुका जन्म सबको शुभकल्याणका निमित्त हुआ । भगवानका जन्म होते ही देवतोंके सिंहासन हिल गये-उनके वहाँ हलचल मच गई । सच है सत्पुरुषोंके चरितकी सभीको सूचना मिल जाती है । इसके बाद अवधिज्ञान द्वारा भगवानका जन्म जान कर देवता-गण उसी वक्त स्वर्गसे चल कर थोड़ी ही देरमें अयोध्या नगरीमें आ पहुँचे। वहाँ आकर सभी देवता-गण और ऐरावत हाथी पर चढ़ा हुआ इन्द्र तो नाभिराजाके महलके द्वार पर खड़ा रह गया और सुन्दर रूपकी सीमा मानिनी| इन्द्राणीको उसने मनोहर प्रसूति-गृहमें भगवानको ले आनेके लिए भेजा । भक्तिभावसे भरी हुई इन्द्राणी गुप्तरूपसे भीनर गई और वहाँ उसने गुणोंके भंडार और मनोहर आदिनाथ प्रभुको एक अनोखी शय्या पर लेटे हुए देखा । उसने माता-सहित उन्हें नमस्कार किया । उत्तम और इष्ट गुणोंके पुंज भगवानको २० कर इन्द्राणीका हृदय बहुत ही सन्तुष्ट हुआ । हर्षके मारे उसका सारा शरीर रोमा श्चित हो गया । उसने भगवानके गुणोंके गौरवको अच्छी तरह समझा इसके बाद वह भगवानकी माताको मायाकी नींदमें सुला कर और उनके .. माया-मय वालकको लिटा कर आप प्रभुको लेकर बाहिर चली आई। इस वक्त भगवानके शरीरका अत्यन्त दुर्लभ स्पर्श कर और उनके मुस: कमळका दर्शन कर इन्द्राणीको असीम हर्ष हुआ । उसने भगवानको पह
SR No.010433
Book TitlePandav Purana athwa Jain Mahabharat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhanshyamdas Nyayatirth
PublisherJain Sahitya Prakashak Samiti
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy