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पहला अध्याय। ज्ञाता हुए हैं और जिनके उत्तम गुण पृथ्वी पर निर्मल चाँदनीकी भॉति प्रकाशित हो रहे हैं उन जगत्पूज्य पूज्यपाद स्वामीकी जय हो।
वे कलंक-रहित अकलंक देव मुझे ज्ञान-दान दें जिन्होंने घड़े बैठी हुई मायादेवीको वातकी वातमें चुप कर दिया-हरा दिया और संसारमें जैनधर्मकी धुजा फहरा दी-प्रभावना की।
उन जिनसेन यतिकी जय हो जो वास्तवमें जिनसेन है-अर्थात् सम्यग्दृष्टि आदिमें मुख्य हैं तथा सरस्वतीके मन्दिर हैं। और जिन्होंने पुण्य-पुरुषोंके चरितोको गूंथ कर अथाह पुराण-समुद्रको जन्म दिया।
वे गुणभद्र भदन्त मेरी सहायता करें जो पुराण-रूप पहाड़ पर प्रकाश डालनेके लिए सूरजके तुल्य हैं।
उनके पुराणको देख कर तथा अन्य संसार-प्रसिद्ध कथाके आधार पर यह पांडव-पुराण नाम ग्रन्थ लिखा जाता है । इसका दूसरा नाम भारत या महाभारत भी है। ... इतना भारी गहरा यह पुराण-समुद्र कहाँ ? और इसकी थाह लेनेको सर्वथा असमर्थ मेरी तुच्छ बुद्धि कहाँ ? इन दोनोंकी कुछ भी बरावरी नहीं; तो भी इस ग्रन्थराजके कहनेका मैंने जो साहस किया है वह मेरा अति साहस है । इसे देख कर लोग हॅसेंगे तो सही, परन्तु फिर भी शास्त्र-पारंगत पुराने जिनसेन आदि महाकवियोंका स्मरण करनेसे मुझे जो पुण्य-लाभ हुआ है उसके वलसे मैं इस ग्रन्थ-समुद्रमें अवगाहन करता हूँ-इसके लिखनेका साहस करता हूँ | जिस तरह वोलनेकी इच्छा करनेवाले गूंगे और भारी ऊँचे सुमेरु पर्वत पर चढ़ जानेकी इच्छा करनेवाले पंगु पुरुषकी लोग हँसी उड़ाते हैं उसी तरह इस अति साहसके लिए वे मेरी भी हँसी उड़ावें तो यह कोई नई बात नहीं । अथवा जैसे एक दुबली-पतली गाय भी दूध पिला कर अपने बछड़ेको पालने का भरसक प्रयत्न करती है वैसे ही यद्यपि मैं अल्पज्ञ हूँ तो भी अपनी शक्तिके अनुसार इसके लिखनेका प्रयत्न करता हूँ। इस ग्रन्थमें जो कुछ भी लिखा जायगा उसमें यद्यपि पुराने महर्षियोंकी कृतिसे कोई नयापन न होगा तो भी इसकी उपादेयतामें कमी न आयगी; क्योंकि दीपक सूरजके द्वारा प्रकाशित पदार्थोंको ही प्रकाशित करता है और तव भी वह उपादेय होता है।
- यद्यपि संसारमें पलाश आदिके निसार और निरर्थक वृक्षोंके समान खोदे स्वभाववाले कवि बहुत हैं और आम आदि उत्तम वृक्षोंके समान उत्तम