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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
समाज में धार्मिकता बहुत अधिक है। चातुर्मास मे जिनेन्द्र अभिषेक नित्य होता है। शास्त्र प्रवचन भी होते है। पर्यषण तथा महावीर जयन्ती आदि उत्सव बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाये जाते है। सामान्यत रात्रि भोजन तथा अष्टमूल सेवन त्याज्य है। यहाँ मन्दिर कमेटी, महिला मण्डल आदि सामाजिक संगठन भी हैं। पुनर्विवाह प्रथा नही है। समाज के लोगो की संख्या कम होने से पल्लीवाल समाज के अतिरिक्त अन्य दिगम्बर जैन समाजो मे भी विवाह सम्बन्ध हो जाते है।
नागपुर क्षेत्र मे कोढाली तथा पारशिवनी मे पल्लीवाल दिगम्बर जैन मन्दिर है। कोढाली तथा पारशिवनी नागपुर से क्रमश 30 तथा 27 मील दूरी पर स्थित है। पारशिवनी का एक मदिर बहुत प्राचीन था। बाद मे पल्लीवालो का उस पर अधिकारी रहा होगा। अाज पारशिवनी मे मात्र एक मन्दिर है और दिगम्बर जैनो मे मात्र पल्लीवालो के दस-बारह मकान है। कोहाली मे दिगम्बर जैनो की दो जातियों रहती है
(1) पल्लीवाल और (2) सैलवाल ।
सैलवाल समाज का मन्दिर पल्लीवालो के मन्दिर से पुराना हैं। 'पल्लीवाल दिगम्बर जैन मन्दिर' का निर्माण लगभग 150 वर्ष पहले हुआ है। लेकिन सभी मूर्तियाँ प्राचीन हैं। यहाँ की अधिकतर मूर्तियां सवत् 1500 के आस-पास की है। इनका उल्लेख डा विद्याधर जोहरापुरकर द्वाग मपादित ग्रन्थ 'भट्टारकसम्प्रदाय' में उल्लेख मिलता है ।
वर्धा नगर में पल्लीवालो के अतिरिक्त पद्मावती पुरवाल, बलोरे, खण्डेलवाल, सैलवाल तथा परवार समाज के लोग भी रहते है। यहाँ पर भी दो दिगम्बर जैन मन्दिर है। एक श्वेताम्बर मन्दिर तथा एक स्थानक भी है ।