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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
में चिनवा दिया। कुछ समय पूर्व प्राचीन मकानो को दोवार गिरने पर यह धन देखा गया था।
धीरे-धीरे राजनैतिक व्यवस्था में परिवर्तन होता चला गया। छोटे-छोटे राजा अग्रेजो के नियन्त्रण मे आ गये। डाकुप्रो के प्रातक भी बढ़ने लगे। इस कारण यहाँ के व्यापारी अन्यत्र जाने को विवश हो गये। अधिकतर पल्लीवाल कन्नौज, कानपुर तथा मुरैना मे विस्थापित हो गये। इस शताब्दी के प्रारम्भ मे रेलगाडियो ने तो एक क्राति सी ला दी। जो व्यापार जल मार्ग से होता था अब वह रेल-गाडियो द्वारा होने लगा। कचौडाघाट मे रेल व्यवस्था नहीं हो सकी। अत यहाँ के रहे-सहे व्यापारी भी अन्यत्र चले गये।
__सन् 1924 मे पल्लीवालो के मात्र तीन घर रह गये थे। कालातर मे वे भी आगरा तथा दिल्ली चले गये। लबेचुप्रो के बहुत से परिवार अब भी कचौडाघाट मे रहते है। जब पल्लोवालो का एक भी परिवार वहाँ नही रहा, तब उनके मन्दिर की सभी मतियो को लबेचूमो के मन्दिर मे स्थापित कर दिया गया। पल्लीवालो का मन्दिर खाली है तथा बन्द पडा है। यह ही मात्र एक स्मारक भवन है जो वहाँ पर रहने वाले पल्लीवालो की याद दिलाता है।
(4-3) नागपुर मत्र के पाल्लीवाल
नागपुर (विदर्भ) क्षेत्र के पल्लीवाल 'उज्जनी पल्लीवाल' है । यहाँ बसने वाले पल्लीवालो के दो प्रवाह दो दिशाम्रो से आये । एक प्रवाह सातपूडा की ओर से ठाणे गाँव (जिला वर्धा) पाया। यह ढाणे गाँव नागपुर अमरावती रोड पर नागपुर से 40 मील की दूरी पर है तथा कोढाली से दस मील पर है। दूसरा प्रवाह