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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
कुन्दकुन्द मुनि का वर्णन भी किया है ।(2) कुन्दकुन्द नाम के ये मुनि क्रमश सवत् 1249 तथा सवत् 1385 मे हुये है। अतः वाराह मे स्थित कुन्दकुन्द मुनि की छत्री इनमे से किसी एक की होगी, लेकिन वह छत्री प्राचार्य कुन्दकुन्द की नही हो सकती है।
. आचार्य कुन्दकुन्द का जन्म तामिल प्रदेश मे हुआ, इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध है । प्राचार्य कुन्दकुन्द ने पल्लव वशी राजा शिवस्कन्द को सम्बोधनार्थ उपदेश दिया। पल्लव वशी राजारो का राज्य तामिल प्रदेश में ही था। तामिल भाषा के महान् काव्य 'कुरल' की रचना भी प्राचार्य ! कुन्दकुन्द ने ही की ।
प्राचार्य कु दकु द की साधना स्थली भी दक्षिण का तामिल प्रदेश ही रही। आज भी वहाँ प्राचार्य श्री के नाम का एक प्रसिद्ध पर्वत है। दक्षिण मे मीमेश्वर से प्रोगम्वी, वहाँ से हुम्बज जाने वाले मार्ग पर शिगोमा से 10 कि मी पर गुड्डकेरि है। वहाँ से 10 किमी दूर जगल मे कु दकु द वेट्ट (कु दकु द पर्वत) है। उसकी चढाई 4 कि मी है। इस रमणीक पर्वत पर एक मन्दिर है । उसमे एक अोर प्राचार्य कु दकुद स्वामी के चरण है तथा पास में ही उनका विराजमान स्थल है जहाँ उन्होंने ग्रथो की रचना की थी।11 अत इन सब प्रमाणो के आधार पर यह निश्चित कहा जा सकता है कि प्राचार्य कु दकुद का सम्बन्ध तामिल प्रदेश से ही विशेष रहा तथा वही उनका जन्म भी हुआ था।
प्रो चक्रवर्ती ने 'पचास्तिकाय' ग्रथ की अपनी प्रस्तावना मे श्री कुन्दकुन्दाचार्य के सम्बन्ध मे एक कथा का उल्लेख किया है ।(36) वे कहते है कि 'पुण्याश्रव कथा' अथ मे शास्त्रदान के रूप में यह कथा दी गयी है। उनके द्वारा उल्लिखित 'पुण्याश्रव कथा' ग्रथ कौन सा है, कुछ निश्चित नही किया जा सका है। यथासम्भव यह प्रथ तामिल भाषा का होना चाहिए।