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तृतीय-अध्याय पल्लीवाल जाति के ऐतिहासिक प्रसंग
[३१] श्री कुन्दकुन्दाचार्य
बहुत समय से यह चर्चा का विषय रहा है कि प्राचार्य कुन्दकुन्द पल्लीवाल जात्युत्पन्न थे या नही ? दिगम्बर सम्प्रदाय मे अधिकतर लोगो की धारणा तो यही है कि प्राचार्य कुन्दकुन्द पल्लीवाल जाति के रत्न थे। इसके प्रमाण मे निम्न दो पट्टावलियो (8,19) को देना पर्याप्त होगा। ___एक प्राचार्य पट्टावली नागौर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार से प्राप्त हुई है। इस पट्टावली को सोकर (राजस्थान) से प्रकाशित चामुण्डराय कृत 'चारित्र सार' नामक ग्रन्य के अन्त में प्रकाशित करवाया गया है। इसमे लिखा है-'श्री मिति पौष कृष्णा 8 विक्रम सवत् 49 (ऊन पचास) और श्री वीर निर्वाण मवत् 519 (पाँच सौ उन्नीस) मे पल्लीवाल जैन जात्युत्पन्न श्री कुन्दकुन्दाचाय हुये। श्री कुन्दकुन्दाचार्य का गृहस्थावस्था काल 11 वष रहा, दीक्षा काल 33 वर्ष, पटस्थकाल 51 वर्ष 10 माह 10 दिन, विरह दिन 51 इस प्रकार से 95 वर्ष 10 माह 15 दिन की सम्पूर्ण प्रायु थी। श्री कुन्दकुन्दाचार्य के ही निम्नाकित 4 (चार) नाम थे- (1) श्री पद्मनन्दि, (2) श्री वक्रग्रीव, (3) श्री गृद्धिपिच्छ (गृद्धपिच्छ), और (4) श्री इलाचार्य (एलाचार्य)।'
एक अन्य पट्टावली प्राचार्य श्री महावार कीति जी के शिष्य आचार्य श्री विमल सागर जी महाराज से प्राप्त हुई है। इस पट्टावली को 'प्राचार्य महावीर कीति स्मृति प्रथ' (सम्पादक