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पल्लीवाल जन जाति का इतिहास दिया। कालान्तर मे वे औरगाबादी तथा फिरोजाबादी गोत्रो से पहचाने, जाने लगे।
(6) काश्मीरिया गोत्र प्रारम्भ के तीनो घटको मे मिलता है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पल्लीवाल समाज का 'काश्मीर' प्रदेश से भी बहुत सम्बन्ध रहा है। बहुत पहले इस जाति के कुछ लोग काश्मीर रहे थे तथा बाद में वे काश्मीरिया नाम से प्रसिद्ध हो गये।
(7) चार गोत्र यानि कि वारीवाल (वाईबाल), उडरिया (डरेपुर), पाती (धराईवाल) तथा वैद (बीदर) ऐसे है जो कि प्रारम्भ के चारो घटको मे मिलते है। निश्चित रूप से ये चारो गोत्र पल्लीवाल समाज के विभिन्न घटको मे बँटने से पूर्व के है।
(8) दस गोत्र ऐसे है जो प्रारम्भ के तीन घटको मे समान रूप से मिलते है।
(9) प्रागरा, अलवर तथा जगरौठी क्षेत्र के 23 गोत्र ऐसे है जो कि मुरैना तथा ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवालो मे भी पागे जाते है। इससे सिद्ध होता है कि मुरैना तथा ग्वालियर क्षेत्र के पल्लीवालो का आगरा, अलवर तथा जगरौठी क्षेत्र के पत्लीवालो से बहुत समय तक सम्बन्ध रहा, जिसके कारण इन दोनो घटको के गोत्र समान पाये जाते है। कालान्तर मे ये दोनो घटक एक-दूसरे से अलग हो गये।
इस प्रकार उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि आगरा, अलवर तथा जगरौठी क्षेत्र के पल्लीवालो का सम्बन्ध कन्नौज, अलीगढ तथा फिरोजाबाद के पल्लीवालो की अपेक्षा मुरैना तथा ग्वालियर के पल्लीवालो से अधिक समय तक रहा। प्रारम्भ मे उपरोक्त चारो घटक एक ही थे। कालान्तर मे ये घटक अलग-अलग हो गये । नागपुर (विदर्भ) क्षेत्र के पल्लीवालो के गोत्रो की संख्या बहुत कम है तथा उनमे से अधिकतर अन्य घटको के गोत्रो से मेल