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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास पल्लीवाल श्रावक धर्म लेकर चले गुजरात खण्ड मे । धनहतशाह ने बखान दिया है कि पल्लीवाल गुजरात खण्ड से चले । धनपत शाह के दो पुत्र-गु झा व सोहिल। गुंभा ने पल्लीपुर मे बास किया जो गुजरात खण्ड के मध्य में है।' 'प्रार्थना-पुस्तक' का यह वक्तव्य उन्नीसवी शताब्दी के मध्य में लिखा गया। धनपतशाह का समय विक्रम की सत्रहवी शताब्दी का मध्य है। उसने जिस घटना का बखान (वर्णन) किया है वह यथा सम्भव चन्द्रवाड मे मुहम्मद गौरी के युद्ध के समय की ही है। इसी समय इटावा अचल में स्थित विभिन्न जैन जातियो के लोग इस क्षेत्र को छोड़ने के लिये बाध्य हो गये तथा हस्तिनापुर के निकट एकत्रित होकर अन्यत्र जाने के लिये विचार-विमर्श करने लगे। पल्लीवालो ने गृजगत की ओर प्रस्थान किया और वे वही बस गये। जैसा कि विभिन्न मूर्तिलेखो से पता चलता है, वि चौदही शताब्दी के मध्य तक ये पल्लीवाल पूरे गुजरात मे फैल गये। पाटण, काठियावाड, मेहसाणा, भरुच तथा सूरत इन सभी स्थानो पर इस जाति के लोग रहते थे।
कुछ मूति लेखो मे गुर्जर पल्लीवाल (शक स 1428), पद्माबती पल्लीवाल (शक स 1601) तथा उज्जनी पल्लीवाल (शक स 1626) का उल्लेख पाता है । ये सभी मूर्तियाँ नागपुर के मन्दिरो मे मौजूद है। इन लेखो से सिद्ध होता है कि पल्लीवाल जाति के कुछ लोगो ने विक्रम की पन्द्रहवी शताब्दी के अन्त में गुजरात प्रदेश छोड दिया तथा उज्जनी नगरी की ओर चले गये तथा वही पर रहने लगे।
ऐसा ज्ञात हुआ है कि आज भी रतलाम मे, जो कि उज्जैन के निकट ही है, पल्लावाल जाति के कुछ लोग रहते है, लेकिन ये सभी हिन्दू धर्म को मानते हैं। अब इनका पल्लोवाल जाति की मूलधारा से कोई सम्बन्ध नही रहा है। उज्जैन के शेष पल्लीवाल