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पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास
'पालीवाल ब्राह्मण इतिहास' । अब हमको अपने लिये यह भी देखना प्रावश्यक है कि बीकानेर के पाली नगर मे प्रथम से और अब तक जैन का कोई चिन्ह या एक पुरुष भी नही रहा है तो कैसे मान लिया जावे कि हमारी जाति भी पालीवाल शब्द से ही विषित करी जावे। यदि दूसरे पाप कहै कि उन ब्राह्मणो मे से ही कुछ लोगो ने जैन धर्म धारण कर लिया होगा. वह जैन पालीवाल कहलाने लगे। इसके लिये अभी तक कोई इतिहास नही मिला है । दूसरे सनातन से जैन धर्मी बिना किसी विशेष कारण वा किसी चमत्कार के जैनी होना नही हो सकता। इतिहास भी इसको पुष्ट करते हैं। और वर्तमान में अपनी जहाँ-जहाँ पर है वहाँ के हर एक व्यक्ति से पल्लीवाल शब्द ही सुना जाता है। सबसे प्रबल प्रमाण पल्लीवाल शब्द ही होने का एक यह भी है कि हमारे पूज्य श्री 1008 श्री कुन्दकुन्दाचार्य की जीवनी व गुरूवावली मे पल्लीवाल शब्द का ही प्रयोग किया गया है । यह कुन्दकुन्दाचार्य वि स 5 मे अपनी 49 वर्ष की अवस्था मे प्राचार्य पद पर विराजमान हुये थे, जिसको ग्राज 1983 वर्ष होते है और पल्लीवाल ब्राह्मणो को 1025-1050 वर्ष होते है । निकास व प्रख्यात होते हुये, तो ऐसी हालत मे कैसे माना जा सकता है कि हम लोग किस प्रमाण से पल्ली शब्द को प्रथक करके पालीवाल लिख सकते हैं। इसके अतिरिक्त ५० दौलतराम जी व कविरत्न प० मनरगलाल जी आदि जो वि स. 1837 से वि० स. 1891 तक मे हुये है जिनमे से मनरगलाल जी के स्वहस्त लिखित 'चौबीसी पाठ' जो कि हमारे पास है उसमे भी पल्लीवाल शब्द ही लिखा है । और पल्लीवाल जैन को कई जातियो मे गोत्र के नाम से पुकारा जाता है और साखा के नाम से भी है । जैसे वि० स० 1164 मे सिंघवी गोत्र की स्थापना के अन्तरगत एक