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पल्लीवाल जन जाति का इतिहास
क्रम टूट गया । आपमें स्वाध्याय की प्रवृत्ति छात्र जीवन से ही थी। जेल मे स्वाध्याय के साथ ही आपने साहित्य सृजन का कार्य भी प्रारम्भ कर दिया। आपको पहली कहानी 'खेल सन् 1928 में 'विशाल भारत' में प्रकाशित हुई थी। उसके बाद आप निरन्तर साहित्य सृजन मे प्रवृत्त रहे हैं । अापको 'हिन्दुस्तान एकेडमी' पुरस्कार साहित अन्य कई पुरस्कारो से सम्मानित किया जा चुका है।
श्री जैनेन्द्र कुमार जी ने कहानी, उपन्यास, निबन्ध, सस्मरण आदि अनेक गद्य विधानो को समृद्ध किया है । अापकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों निम्नलिखित है। निबन्ध सग्रह-प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वादय, साहित्य का
श्रेय और प्रेय, मथन,सोच विचार, काम, प्रेम और
परिवार। उपन्यास - परख, सुनीता, त्याग पत्र, कल्याणी, विवर्त, सुखदा,
व्यतीत, जयवर्धन, मुक्ति बोध । कहानी संग्रह- फांसी, जयसन्धि, वातायन, नीलम देश की राज
कन्या, एक रात, दो चिडियाँ, पाजेब । (इन सग्रहो के बाद जैनेन्द्र जी की समस्त कहानियाँ दस भागो में प्रकाशित की गई है।) सस्मरण-- ये और वे।' अनुवाद - मन्दाकिनी (नाटक), पाप और प्रकाश (नाटक) प्रेम
__मे भगवान (कहानी सग्रह)।
उपर्युक्त रचनामो के अतिरिक्त अापन सम्पादन कार्य भी किया है। बहुत • मय से ग्राप दिल्ली मे रह रहे है। हम आपकी दीर्घायु की कामना करते है। (5-24) श्री श्यामलाल वारोलिया
माप प्रागरा के प्रमुख समाज सेवी थे। मापका जन्म आगरा