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समाज दर्शन
78 लिखवाई। आज भी ये हस्तलिखित पुस्तकें उनके वंशजो के घरों में उपलब्ध हैं। धूलिया गज (आगरा) तथा मिठाकुर (मागरा) के श्री पल्लीवाल दिगम्बर जैन मन्दिरो में भी लगभग दो सौ वर्ष पुराने हस्तलिखित शास्त्र मौजूद हैं । हस्तलिखित 'भक्ताम्बर पाठ' तथा भजन संग्रह तो कई घरो मे उपलब्ध हैं। पल्लीवाल लिपिकारो द्वारा की गई लगभग डेढ सौ-पोने दो सौ वर्ष प्राचीन कुछ हस्तलिखित लिपियां जयपुर के बडे तेरापथी दिगम्बर जैन मन्दिर तथा जरनल गज, कानपुर के दिगम्बर जैन मन्दिर में भी उपलब्ध
कचौडाघाट के पल्लीवाल दिगम्बरजैन मन्दिर मे भी कई प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ ये । जब पव्लीवाल इस स्थान को छोडकर अन्यन्त्र चले गये तो उन ग्रन्थो को अपने साथ ले गये। कुछ ग्रन्थ कन्नौज मे भी होने की सम्भावना है।
पल्लीवाल जाति मे कई ऐसे विद्वान भी हुये हैं जिन्होने मोलिक रचनाएं लिख कर जैन साहित्य को समृद्ध करन मे अपना बहुमल्य योगदान किया। इनका परिचय इस पुस्तक मे आगे दिया है। इन विद्वानो मे कवि धनपाल, प दौलतराम तथा कविवर मनरगलाल प्रमुख हैं । प दौलतराम कृत छहढाला तो हिन्दी की महान् जैन कृति है । प्राचार्य कुन्दकुन्द कृत भी अनेक आगम ग्रन्थ उपलब्ध है, जिनमे प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, पचास्तिकाय आदि आध्यात्मिक ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है । हिन्दी साहित्य के क्षेत्र मे भी पल्लीवालो ने अमूल्य योगदान किया है । सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनन्द्र पल्लीवाल जाति के ही हैं। (4-9) शिक्षा का प्रचार-प्रसार
पल्लीवाल जाति मे शिक्षा का प्रचार भी हमेशा से हो रहा है। इसी कारण प्राचीन समय से ही इस जाति मे कई कवि एव