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किपि अण्णाउ
किज्ज प्राय चित्ति। लिहि मणु पारिवि सोउ णिचितिउ पाय पसारिवि
(क) 1/1 सवि
- कुछ (अण्णा ) 1/1 वि
अन्याय अव्यय
नहीं (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि =किया जाता है (आय) 2/2
-इन दोनो को (चित्त-चित्तेंचित्ति) 3/1 =चित्त मे (लिह) विधि 2/1 सक -लिख ले (मरण) 2/1
मन मे (धार+इवि) सक
-स्थिर करके (सोम) विधि 2/1 अक -सो (णिचिंता) 2/1 वि अ' स्वा =निश्चिन्त (होकर) (पाय) 2/2
=पांवों को (पसार+इवि) सक
-पसारकर
79 कि
बहुए प्रडवड वडिण
दह
(क) 1/1 सवि (बहु) 3/1 वि अव्यय (वडवडेण-वडिण) 3/1 (देह) 1/1 अव्यय (अप्प) I/1 (हो) व 3/1 अक (देह) 6/1 (भिण्ण) 1/1 वि 'अ' स्वा (णाणमअ) 1/1 वि
=क्या -बहुत =अटपट =कहने से -देह
नहीं -प्रात्मा -होती है = देह से = भिन्न -ज्ञानमय
अप्पा होइ
भिण्णउ रगाणमउ
1 कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या
3-137)। 2 कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर द्वितीया का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या
3-137) । 3 अपभ्रश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ 151 ।
पाहुडदोहा चयनिका ]
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