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अप्पउ मुगहि
अव्यय (अप्पन) 1/I 'अ' स्वार्थिक (मुण) व 2/1 सक अव्यय अव्यय (पाव) व 2/1 सक (रिणवारण) 2/1
प्रात्मा =मानता है =नहीं -कभी =पाता है निर्वाण
वि पावहि रिपव्वाणु
73 रायवयलहिं
छहरसहि पहि रूवहिं
चितु
जासु
(राय)-(वयल्ल) 3/2] [(छह) वि-(रस) 3/2] (पच) 3/2 वि (रूव)3/2 (चित्त) 1/1 (ज) 6/1 स अव्यय (रज-रजिअ) भूक 1/1 (मुवरणयल) 7/1 (त) 2/1 सवि (जोड-य) 8/1 'य' स्वार्थिक (कर) विधि 2/1 सक (मित्त) 2/1
-प्रासक्ति के कोलाहल द्वारा -छहो रसो के द्वारा =पाचो (रूपो) के द्वारा -रूपो के द्वारा =चित्त -जिसका =नहीं =रगा गया =पृथ्वीतल पर =उसको =हे योगी =(कर)बना -मित्र
रजिउ भवणयलि
सो
नोइय
करि मित्तु
74 तोडिवि
सयल वियप्पडा अप्पह मणु
(तोड+इवि) सकृ
तोडकर (मयल) 2/2 वि
=सब (को) (वियप्प-+अड) 2/2 'अह' स्वा =विकल्पो को (अप्प) 6/1
-आत्मा मे (मरण) 2/1
-मन को
। 2
श्रीवास्तव, अपभ्रण मापा का अध्ययन, पृष्ठ, 174 । कभी-कभी सप्तमी के रथान पर पी का प्रयोग पाया जाता है (है. प्रा व्या. 3-134)।
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