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जीवतहा मणु
मवर
पर्चेदियहा समाणु
सो
(जीव→जीवत) वकृ 6/1 जीते हुए (मरण) 1/1
मन (मुवन) भूक 1/1 अनि 'अ' स्वा =मरा हुमा (पचेदिय) 6/2
-पचेन्द्रिय के अव्यय
-साथ (त) 1/1 सवि
-वह (जाण) व कर्म 3/1 सक समझा जाता है (मोक्कल-अ) 1/1 वि 'अ' स्वा =मुक्त (लद्धन) भूकृ 1/I अनि 'अ' स्वा =प्राप्त किया गया (पह) 1/1
-मार्ग (रिणव्वाण) 1/1
-शान्ति
जाणिज्ज मोक्कलउ लद्ध पह णिव्वाणु
68 कि
किज्जह
अक्खरह
-जो
कालि
(क) 1/1 सवि
क्या (किज्जइ) व कर्म 3/1 सक अनि=किया जाता है (बहु) 6/2 वि
-बहुत (अक्खर) 6/2
-शब्दो से (ज) 1/2 सवि (काल) 3/1
-समय में (ख) 2||
=विस्मरण को (जा) व 3/2 सक
=प्राप्त होते हैं अव्यय
जिससे (अणक्खर) 1/I वि
=अक्षररहित (सत) 1/1 (मुरिण) 1/1
-मुनि
जति जेम अणक्खरु सत मुरिण
कभी-कभी तृतीया के स्थान पर षष्ठी का प्रयोग पाया जाता है । (हे प्रा व्या 3-134)। समाणु के योग मे तृतीया होनी चाहिए। कभी-कभी सप्तमी के स्थान पर तृतीया का प्रयोग पाया जाता है (हे प्रा व्या 3-137)।
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पाहुडदोहा चयनिका ]