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________________ कह तह केवलणाणु अव्यय अव्यय (केवलणाण) 1/1 = कैसे =वहां -फेवलज्ञान जो 38 अप्पा (अप्प) 2/1 =आत्मा को मिल्लिवि (मिल्ल+इवि) सकृ = छोडकर जगतिलउ [(जग)-(तिलस) 2/1 वि] =जगत की शोभा (ज) 1/1 सवि -जो परदग्वि [(पर)-(दव्व) 7/1] =परवस्तु मे रमति (रम) व 3/2 अक =टिकते हैं अण्णु (अण्ण) 1/1 वि =अतिरिक्त अव्यय = क्या मिच्छादिट्ठियह (मिच्छादिट्ठिय) 6/2विय' स्वा =मिथ्यादृष्टि के मत्था (मत्थ) 7/1 -माथे पर सिंगइ (सिंग) 1/2 =सींग होति (हो) व 3/2 प्रक =होते हैं कि 39 अप्पा मिल्लिवि जगतिलउ मद मात्मा को =छोडकर =जगत की शोभा =हे मूर्ख झायहि अण्ण (अप्प) 2/1 (मिल्ल+इवि) सकृ [(जग)-(तिलअ) 2/1 वि| (मूढ) 8/1 वि अव्यय (झा→माय) विधि 2/1 सक (अण्ण) 2/1 वि (ज) 3/1 स (मरग) 1/1 (परियण→ परियारिणय- परियारिणयअ) भूक 1/1 'अ' स्वार्थिक =विचार -अन्य को =जिसके द्वारा =मरकत =जान लिया गया मरगउ परियाणियउ । श्रीवास्तव, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृष्ठ, 146 । राहुडदोहा चयनिका ] [ 45
SR No.010431
Book TitlePahuda Doha Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1991
Total Pages105
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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