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-पादपूरक
पावहि परमपउ
अव्यय अव्यय (पाव) व 21 सक ((परम) वि- (पत्र) 2/1] अव्यय (ससार) 2/1 (भम) व 2/1 सक
=प्राप्त करता है (करेगा) -परमपद -और फिर =ससार (मे) -भ्रमण करता है (करेगा)
पुणे
संसार भमेहि
24 प्रप्पा
मिल्लिवि णाणमउ
प्रवर
परायउ
भाउ
(अप्प) 2/1
-प्रात्मा को (मिल्ल+इवि) सक
=छोडकर (णारगमन) 2/1 वि
-ज्ञानमय (अवर) 1/1 वि
दूसरा (परायन) 1/1 वि
-पर-सम्बन्धी (मात्र) 1/1
भाव (त) 2/1 स
- उसको (छड+एविणु) सक
-छोडफर (जीव) 8/1
-हे मनुष्य (तुम्ह) 1/1स (झायहि-माय) विधि 2/1 सक-ध्यान कर [(सुद्ध) वि-(सहाम) 2/1] =शुद्ध स्वभाव का
सो
छडेविणु
जीव
तुह झावहि सुखसहाउ
25 बुझ
जिणु भण
(वुज्झ) विधि 2/2 सक (जिण) 1/1 (भण) व 3/1 सक (क) 1/1 सवि (झ) विधि 3/1 सक अव्यय
-समझो =जिन -कहता है (कहते हैं) -कौन -समझे
को
बुझाउ हलि
} मायहि-पाठ ठीक है। 2 श्रीवास्तव, अपभ्रश भापा का अध्ययन, पृष्ठ 212 ।
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[ पाहुडदोहा चयनिका