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अनुवाद
शिव के विना शक्ति का व्यापार नहीं होता और शक्तिविहीन शिव का। इन दोनो को जान लेने से सकल जगत मोह में विलीन समझ में आने लगता है। . जवतक तुम्हारा वह अन्य, ज्ञानमय भाव नही लखा गया (तभी तक यह) संकल्प-विकल्परूपी अज्ञानमय, हतभाग्य, बेचारा चित्त है।
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नित्य, निरामय, ज्ञानमय, परमानन्द-स्वभाव, पर आत्मा को जिसने जान लिया उसके कोई अन्य भाव नहीं रहता।
५८ हमने एक जिन को जान लिया तो अनन्त देव को जान
लिया। जो ऐसा आचरणशील नहीं है वह मोह से
मोहित होकर दूर भ्रमण करता रहता है। ५९ जिसके हृदय में केवलज्ञानमय आत्मा निवास करता
है वह त्रिभुवन में स्वतंत्र रहता है। उसे कोई पाप
नही लगता। ६० जो मुनि बंधन के हेतु को न सोचता है, न कहता है
और न करता है वही केवलज्ञान से स्फुरायमान
शरीरवाला, परमात्म, देव है। ६१ जव भीतरी चित्त मैला है तब वाहिर तप करने से
क्या? चित्त में उस विचित्र निरंजन को धारण कर जिससे मेल से छुटकारा हो।