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अनुवाद
आपत्ति में अटपट बडबडाता है पर इससे लोक का मनोरंजन (विनोद) मात्र होता है। मन के शुद्ध और निश्चल होने पर परलोक प्राप्त होता है। धंधे में पड़ा हुआ सकल जग, अज्ञानवश, कर्म करता है किन्तु मोक्ष के कारण अपनी आत्मा का एक क्षण भी चिन्तन नहीं करता।
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यह आत्मा जब तक वोध नहीं पाता तब तक पुनकलन में मोहित होकर, दुःख सहता हुआ, लाखों योनियों में भ्रमण करता है। घर, परिजन, तन व इष्ट सव अन्य है, इन्हें अपने मत जान। यह कर्म के अधीन कर्मजाल है, ऐसा योगियों ने आगम में बताया है। हे जीव ! मोह के वश में पड़कर तूने जो दुख है उसे सुख कर के माना है, और जो सुख है उसे दुख । इस से तूने मोक्ष नहीं पाया। धन और परिजन का चिन्तन करने से, हे जीव! तूं मोक्ष नही पा सकता। तो भी तूं उसी उसी के चिन्तन करने में सुख मानता है।
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हे जीव ! इसे गृह-वास मत समझ, यह दुष्कृतवास (पापवास) है। यह यम द्वारा मांडा (फैलाया) हुआ अविचल फंदा है, इसमें सन्देह नहीं।