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पाहुर-दोहा
वाक्य अ.या है, तथा द. प्रति की पुष्पिका में ये दोहे मुनि-रामसीह -विरचित कहे गये हैं। इससे ज्ञात होता है कि कोई रामसिंह नामधारी मुनि इस ग्रंथ के रचयिता हुए हैं। किन्तु क. प्रति की पुष्पिका में यह दोहापाहुड योगीन्द्रदेवविरचित ' कहा गया है। इससे ग्रंथकर्तृत्व का प्रश्न कुछ जटिल हो गया है । यह हम देख ही चुके हैं कि प्रस्तुत ग्रंथ की योगीन्द्रदेव के अन्य दो ज्ञात ग्रंथों से भाषा और भाव में असाधारण समता है । इस सम्बंध में श्रीयुक्त उपाध्ये का बहुत ही नियन्त्रण पूर्वक एक संकेत है कि प्रस्तुत ग्रंथ कदाचित् योगींद्रकृत ही हो और रामसिंह केवल एक परम्परागत नाम हो, जैसा कि परमात्मप्रकाश (दोहा १८८ ) में 'अजउ संति भणेइ । में शान्ति का नाम पाया जाता है । किन्तु जबतक और कोई सवल प्रमाण न मिलें तबतक इस ग्रंथ को योगीन्द्रदेव कृत मानना ठीक नहीं है। योगीन्द्र ने अपने परमात्मप्रकाश व योगसार' में अपना नाम स्पष्ट रूप से अंकित कर रखा है। हम सावयधम्मदोहा में देख चुके हैं कि किस प्रकार
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9. A. N. Upadhyo: Joiodu nnd his Apaburansa works: ___Annals of Bhand. Orien. Re. Inst. Poona, 1931 p. 152. २. परमात्मप्रकाश दोहा ८. ३. योगसार दोहा १०७. ४. एक बार काव्य अमृतशीति (संस्कृत) के अन्त में योगीन्द्र का नाम
मिलता है। पर इन दोनों कानों के एकरय के सम्बंध में संशय है। मा. पंधमाला २१, पृ. १०१ व भूमिका,