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टिप्पणी
:१३१ प्राणवायु का संचार करता है और आकाश में सदा विचरण करता है उसी वायु से जीवों का सांसारिक जीवन है।
२२२. इस दोहे का अभिप्राय भव्य और अभव्य जीवों से है । ग्रंथकार अन्त में कहते हैं कि जिस प्रकार मूछित व्यक्ति थोड़े से उपचार से सचेत हो जाता है, किन्तु जो मृत हो चुका है वह हजार उपायों से भी नहीं जी सकता; उसी प्रकार जो भव्य जीव हैं वे इस थोड़े से उपदेश से सन्मार्ग पर लगकर आत्म कल्याण कर लेंगे, किन्तु जो अभव्य हैं उनको इससे कोई लाभ न होगा।