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टिप्पणी
३. 'देविहि कोडि' का " करोड़ों देवियों के साथ " अर्थ करने में कोडि ' शब्द में तृतीया विभक्ति का लोप मानना पड़ेगा, अर्थात् कोडि यहां कोडिहिं ( कोटिभिः ) के बराबर है। कोटि को सप्तम्यन्त मानकर देवियों की कोटि में' अर्थ भी सम्भव है।
५. 'सालिसिस्थ' का उल्लेख कुन्दकुन्दाचार्यकृत 'भाव पाहुड' की निम्न गाथा में आया है- मच्छो वि सालिसित्या असुद्धभावो गओ महाणरयं ।
इयाणा अप्पाणं भावह जिणभावणं णिच्वं ।। ८८ ॥ अर्थात् ' सालिसिथ मच्छ भी अशुद्ध भाव के कारण महानरक को गया । ऐसा जानकर जिन भगवान द्वारा उपदिष्ट रीति से अपने आत्मा की भावना कर।
इस गाथा पर श्रुतसागरजी ने अपनी टीका में शालिसिक्थ की यह कथा दी है। पुष्पदन्त तीर्थकर की जन्मभूमि काकन्दीपुरी में सौरसेन नाम का राजा था । उसने श्रावक के व्रत लिये थे और मांसभोजन का त्याग किया था, किन्तु एक वेदानुयायी रुद्रदत्त की संगति से उसकी मांस-भोजन की इच्छा हुई। व्रतभङ्ग और