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अनुवाद
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१८३ जिससे बुद्धि तड़ से टूट जाय और मन भी अस्त हो जाय, हे स्वामी, ऐसा उपदेश कहिये । अन्य देवों से क्या ?
१८४ न सकलीकरण जाना, न पानी और पर्ण का भेद, और न आत्मा का और पर का मेल । क्षुद्र देव को पूजता है ।
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१८५ न आत्मा और पर का मेल हुआ और न आवागमन भंग हुआ | तुप कृटते काल गया और एक तंदुल हाथ
न लगा ।
१८६ देहरूपी देवालय में शिव निवास करता है, तू देवालय में ढूँढता है । मेरे मन में यह हँसी आती है कि हूँ. सिद्ध से भीख मँगवाता है ।
१८७ वन में, देवालय में, तीर्थों में भ्रमण किया और आकाश मैं भी देखा । अहो, इस भ्रमण में भेड़िये और पशु लोगों से भेंट हुई।
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१८८ दोनों मार्गों को छोड़कर अलक्षण ( अभागी) बीच में जाता है। उसे दोनों का कुछ फल नही मिलता जिससे वह लक्ष्य को पा जावे ।
• १८९ हे जोगी ! जोग की गति विपम है । मन रोका नही जाता । इन्द्रिय-विषयों के जो सुख हैं उन्ही पर बलि बलि जाता है ! बलिदान होता है ) ।