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नेमिनाथमहाकाव्य
वशता के कारण कवि को इस शान्तपर्यवसायी काव्य में पानगोष्ठी और रतिक्रीडा का रगीला चित्रण करने मे भी कोई वैचित्र्य नही दिखाई देता । काव्य - रूढियों का समावेश कीर्तिराज ने भी किया है, किन्तु उसने विवेक तथा सयम से काम लिया है । उसने मूल कथा से अमम्वद्ध तथा अनावश्यक पूर्वपरिगणित प्रसगो की तो पूर्ण उपेक्षा की है, नायक के पूर्वजन्म के वर्णन को भी काव्य में स्थान नही दिया है । उनके तप, समवसरण तथा धर्मोपदेश का भी चलता-सा उल्लेख किया है जिससे कथानक नेमिनिर्वाण जैसे विस्तृत वर्णनो से मुक्त रहता है । अन्यत्र भी कीतिराज के वर्णन मन्तुलन की परिधि का उल्लघन नहीं करते । जहाँ वाग्भट ने तृतीय सर्ग मे प्रात काल का वर्णन करके, अन्त मे, जयन्त देव के शिवा के गर्भ मे प्रवेश का केवल एक पद्य में उल्लेख किया है, वहाँ कीर्तिराज ने नेमिनिर्वाण के अप्सराम्रो के आगमन के प्रसग को छोड़ कर उसके द्वितीय तथा तृतीय सर्गों मे वर्णित स्वप्नदर्शन तथा प्रभात-वर्णन का केवल एक सर्ग मे समाहार किया है । इसी प्रकार वाग्भट ने वसन्त-वर्णन पर पूरा एक सर्गः व्यय किया है जबकि वीतिराज ने अकेले आठवें सर्ग का उपयोग छहों ऋतुओ का रोचक चित्रण करने मे किया है । नेमिनाथमहाकाव्य का विवाह प्रसंग वाग्भट से अधिक स्वाभाविक तथा विचारपूर्ण है, यह पहले कहा जा चुका है । कीर्तिराज मार्मिक प्रमगो की सृष्टि करने मे निपुण हैं । नेमिनाथ के प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् ग्यारहवे सर्ग मे, राजीमती के करुण विलाप के द्वारा कवि ने जहाँ उसके तस हृदय के उद्गारो की अभिव्यक्ति की है, वहाँ अपने मनोविज्ञान- - कौशल का भी परिचय दिया है । वाग्भट ने यहाँ मौन साध कर एक ऐसा हृदय स्पर्शी प्रसंग हाथ से गवा दिया है, जिससे उसके काव्य की मार्मिकता में निस्सन्देह वृद्धि होती । परित्यक्ता नारी, चाहे वह कितनी भी गम्भीर तथा सहनशील हो विल्कुल ही होठ सी ले, यह कैसे सम्भव है ? वारहवे सर्ग मे कीर्तिराज ने चित्रकाव्य मे अपने रचना - कौशल का प्रदर्शन किया है तो नेमिनिर्वाण का रैवतकवर्णन उसी प्रवृत्ति का द्योतक है । नेमिनाथमहाकाव्य मे वस्तुव्यापार-वर्णनो के