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________________ नेमिनाथमहाकाव्य ] [ ११ के आर्द्र प्रसाधन के मिटने के भय से गिरते उतरीय को नही पकडती, और उसी अवस्था में वह गवाक्ष की ओर दौड जाती है 19 प्रकृति-चित्रण - नेमिनाथमहाकाव्य की भावसमृद्धि तथा काव्यमत्ता का प्रमुख कारण इनका मनोरम प्रकृति-चित्रण है, जिसके अन्तर्गत कवि की काव्य प्रतिभा का भव्य उन्मेप हुआ है । कीत्तिराज का प्रकृति दर्णन प्राकृतिक तथ्यो का कोरा आकलन नही अपितु सरमता से ओत-प्रोत तथा कविकल्पना से उद्भासित काव्याश है । कवि ने, महाकाव्य के अन्य पक्षो की भांति, प्रकृति-चित्रण मे भी अपनी मौलिकता का परिचय दिया है । कालिदासोत्तर महाकाव्यो मे, प्रकृति के उद्दीपन पक्ष की पार्श्वभूमि मे उक्ति - वैचित्र्य के द्वारा नायक-नायिकाओ के विलासिता पूर्ण चित्र अक्ति करने की परिपाटी है । प्रकृति के आलम्बन पक्ष के प्रति वाल्मीकि तथा कालिदाम का-सा अनुराग अन्य सम्कृतकवियो में दिखाई नहीं देता । कीर्तिराज ने यद्यपि विविध शैलियो मे प्रकृति किन्तु प्रकृति के स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत करने मे उसका और इनमे ही उसकी काव्यकला का उत्कृष्ट रूप व्यक्त का चित्रण किया है, मन अधिक रमा है हुआ है । प्रकृति के आलम्वन पक्ष का चित्रण कीतिराज के सूक्ष्म पर्यवेक्षण का परिणाम है। वर्ण्य विषय के साथ तादात्म्य स्थापित करने के पश्चात् अकित किये गये ये चित्र अद्भुत सजीवता से स्पन्दित हैं । हेमन्त मे दिन क्रमश छोटे होते जाते है और कुहासा उत्तरोत्तर वढता जाता है । सुपरिचित तथा सुरुचिपूर्ण उपमानो मे कवि ने इस हेमन्तकालीन तथ्य का ऐसा मार्मिक निरूपण किया है कि उपमित विषय तुरन्त प्रस्फुटित हो गया है । ७ काचित्करार्द्र प्रतिकर्ममगभयेन हिरवा पतदुत्तरीयम् । मञ्जीरवाचालरदारविन्दा द्रुत गवाक्षाभिमुख चचाल ॥ नेमिनाथमहाकाव्य, १०११३
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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