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नेमिनाथमहाकाव्य ]
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चरण से हुमा है, जिसमे स्वयं काव्यनायक नेमिनाय की चरण-वन्दना की गयी है । इसकी भाषा-शैली में महाकाव्योचित उदात्तता है । अन्तिम सर्ग के एक अश मे चित्रकाव्य की योजना करके कवि ने चमत्कृति उत्पन्न करने तथा अपने भाषाविकार को व्यक्त करने का प्रयास किया है । काव्य का शीर्षक तथा सर्गों का नामकरण भी शास्त्रानुकूल है। कवि ने सज्जन-प्रशमा, खलनिन्दा तथा नगर वर्णन की रूढियो का भी पालन किया है। किन्तु छन्दप्रयोग-सम्बन्धी परम्परागत वन्वन उसे मान्य नही । इस प्रकार नेमिनाथ काव्य मे महाकाव्य के अनिवार्य म्यूल, सभी तत्व विद्यमान हैं, जो इसकी सफलता के निश्चित प्रमाण हैं।
नेमिनाथमहाकाव्य की शास्त्रीयता
नेमिनायमहाकाव्य पौराणिक कृति है अथवा इसकी गणना शास्त्रीय महाकाव्यो में की जानी चाहिए, इसका निश्चित निर्णय करना कठिन है। इसमे, एक ओर, पौराणिक महाकाव्य के तत्व दृष्टिगोचर होते है, तो दूसरी ओर यह शास्त्रीय महाकाव्य के गुणो से भूषित है । पौराणिक महाकाव्यो के अनुरूप इममें शिवादेवी के गर्भ मे जिनेश्वर का अवतरण होता है जिसके फलस्वरूप उमे भावी तीर्थकर के जन्म के सूचक परम्परागत चौदह स्वप्न दिखाई देते हैं । दिक्कुमारियां नवजात शिशु का सूतिकर्म करती हैं । उसका स्नात्रोत्सव स्वय देवराज द्वारा मम्पन्न होता है । दीक्षा से पूर्व भी वह काव्यनायक नायक का अभिषेक करता है । वस्तुत वह सेवक की भाँति हर महत्वपूर्ण अवसर पर उनकी सेवा में रत रहता है। काव्य मे समाविष्ट दो स्वतन्त्र म्तोत्र तथा जिनेश्वर का प्रशस्तिगान भी इसकी पौराणिकता को इगित करते हैं। पौराणिक महाकाव्यो की परिपाटी के अनुसार इसमे नारी को जीवनपथ की वाचा माना गया है तथा इसका पर्यवसान शान्तरस मे हुआ है। काव्यनायक दीक्षित होकर केवलज्ञान तथा अन्तत शिवत्व को प्राप्त करते है। उनकी देशना का समावेश भी काव्य में हुआ है ।