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॥ वस्तु ॥ कुमरु पत्तउ क्रमरु पत्तज, जान सजुत्त । राद्रहि पुरि सुघण सुयण, जर्णाणि बर्घावहि सोहड | नव अण वट सहिय जण मणु, अणेग आभरणि मोहइ । देहिलग वरु चरणावियर, मडिय पउरिय नदि । सिरि जिणवर्द्धनसूरिनिय दिक्ख कुमरि आदि ||३७||
।
॥ भास ॥
कहिय जिणवर तणा, भणिय
आगम छणा, लक्खण, तर्क नाटक पुराण ।
पच सुमितिर्हि सहिय गुत्ति तिहि,
अविरहिय वहरए कितिराजो सुजाण ||३८||
जाणि जिनवर्द्धनसूरि गुण वर्द्धन, चवदसह सत्तरे (१४७०) पट्टणे पुरवरे,
पडिय गुण गण माँहि राउ ।
कियउ 'वाणारिउ' कित्तिराउ ||३६||
भविय जण बोहए वादि पड़ि रोहए,
लहुय वय तहवि गुरु गुण विसालो ।
भुयण सुपयास ए तिमिर भर नासए,
दिणयरो जह उदयमि वालो ||४०||
नयरि महेव ए चउदस्य असियए ( १४८०),
कित्तिराजोय जिणभद्द सूरि ।
दसम वइसाह सुदि ठविय उवझाय पदि,
हरिसिय देवलदेवि भूरि १४१ ॥ निय सदाचार आगम वलेण ।
करिय विहार सुविचार उत्तरदिशि,
खरतराचार लीणाउ घण साविया,
निम्मया अभिनवा तत्थ तेणं ॥४२॥