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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
एकादश सर्ग
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तव पराक्रमी सयमभूपति ने, तेजी से भागते हुए उस पर विशद अध्यवसाय रूपी मुद्गरो से प्रहार करके उसे चूर-चूर कर दिया ॥४॥
तदनन्तर राजाओ तथा देवेन्द्रो द्वारा प्रशसित चरित्रराज ने अपने सैनिको के साथ नेमीश्वर रूपी राजधानी मे फूल बरसाते हुए महान् उत्सव के माथ प्रवेश किया ॥८॥
तव धातिकर्मों का क्षय होने से श्रीनेमिनाथ को अनुपम एव निर्वाध केवल ज्ञान तथा दृष्टि प्रास हुए, जिनके प्रभाव से प्राणी समस्त लोक और अलोक को सदैव हस्तामलकवत् जानता और देवता है ॥८६॥