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एकादश मर्ग
[ नेमिनायमहाकाव्यम्
(यह सुनकर) ऋद्ध हुए मोहराज ने युद्ध के लिये तैयार होकर अपने सैनिको को बुलाया। सचमुच स्वाभिमानी बलवान् लोग शनु में तिरस्कार सहन नहीं करते ॥५६॥
इसके बाद स्वाभिमानी राजा मोह ने अपनी सारी मदमस्त सेना को इकट्ठा करके, सयम के साथ युद्ध करने के लिये प्रस्थान किया ॥५७)
___ तव सयमभूपति के यह कहने पर कि मेरे सामने शत्रु के प्रमुख ननिको के नाम लो, मन्त्री सुवोध ने कहा-स्वामी ! सुनो। आपके गत्रु की सेना मे फुमत नामक महावली योद्धा है, जिसने विविध प्रकार की कपटपूर्ण चेष्ट मो मे सारे जग को पीडित कर रखा है ।।५।।
इसी के द्वारा भ्रष्ट किये गये कुछ लोग लिंग को शीश मुनाते हैं, कुछ ने अपने कुटुम्ब को छोड दिया है और कुछ शरीर पर भस्म रमाते हैं ॥६०॥
नर तथा नारी रूपी रथो मे बैठे हुए पाच विषय इसके अन्य महान् योद्धा हैं, जिन्होंने आप की अवज्ञा करके समस्त लोगो को (अपने जाल से) आवृत कर रखा है ।।६।।
शत्रु मोह का लालिमा, कम्पन तथा ताप लक्षणो वाला क्रोध नामक पुत्र पैदा हुआ है। वह नाग की तरह मनुष्यो के गुण रूपी इ धन को तुरन्त भस्म कर देता है ।।६२॥
५सी का दूसरा पुत्र महकार है, जो सदैव दूसरो की निन्दा करने में तत्पर रहता है। अपने गुणो से सदा. उत्कर्ष को प्राप्त हुआ वह तीनो लोको - को तिनके के बराबर भी नही समझता ॥३३॥
आप मोह की मधुरभापिणी तथा तीनो लोको को छलने वाली पुत्री - शठता को देखते हैं। आश्चर्य है, इसे मार कर भी मनुष्य को स्त्री-हत्या का पाप नहीं लगता ॥६॥