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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
दशम मर्ग
प्रभु को देखने की इच्छा से सहसा उठी हुई किमी अन्य गुये हार से गिरते हुए मोटे-मोटे मोतियो से भूमि को पग-पग कर दिया || १४ ||
[ १२३
स्त्री ने, अध
पर अलकृत
खिडकी मे बैठी किसी स्त्री के चवाने के लिए तैयार किये गये चूर्णमिश्रित पान का आधा भाग उसके मुह मे रह गया और आधा हाथ
मे ।।१५ ॥
प्रभु के रूप को देखकर आनन्दातिरेक के कारण एकटक दृष्टि लगाए हुए किसी दूसरी ने, बहरी की भाँति, समीप स्थित सखी के शब्द को नही सुना, यद्यपि वह उसे बार-बार पुकार रही थी ॥१६॥
कोमल हाथो से पानी के घड़े को खीचती हुई और इमीलिए कन्वो तथा आँखों को ऊपर किये हुए कोई, खिचे घनुष की तरह, खडी रही । मोह | स्त्रियो मे देखने की कितनी आतुरता होती है ||१७||
दूमरी, कमल-तुल्य एक आंख को आज कर और दूसरी को आजने के लिये मलाई पर काजल लेती - लेती जल्दी-जल्दी झरोखे की ओर भाग गयी ||१८||
किसी स्त्री ने सुवर्ण गृह के झरोखे के अन्दर से, आकाश मे ( निकले ) आनन्ददायक चन्द्रमा की तरह प्रभु को राजपथ पर आया देखकर, दोनो हाथ जोडकर तथा सिर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया ॥ १६ ॥
'सखि | केवल एक क्षण प्रतीक्षा करो। मैं भी घर बन्द करके आ रही हूँ' ऐसा कहती हुई अपनी सखी की परवाह न करके कोई स्त्री मासन से उठकर भाग गयी ||२०||
कुछ स्त्रियो ने घर की खिडकी मे स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ टकराने के कारण हारो से गिरे मोतियो और रत्नों के समूह को पुष्पराशि की तरह रास्तों में बिखेर दिया ॥२१॥