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पचम मग
[ नेमिनाथमहाकाव्यम
वह स्वर्ण-खचित पर्वत, जो बहुमूत्य रत्नो को फैलती हुई कान्ति से अन्धकार को नष्ट कर रहा था, ऐसा लगता था मानो पृथ्वी पी नारी को चूडामणि हो ॥३४॥
जिसकी सुपारी, इलायची तथा देवदारुमओ से मुगन्वित और मपों से रहित होने के कारण मोम्य गुफाओ को देखकर किस रतिचतुर तथा गहनो से सजी नारी ने अपने पति को मोहित नही कर लिया।।३५॥
जिसकी तलहटी मे कोकिलो के कण्ठ के समान श्यामल गहन वन ऐमा प्रतीत होता है मानो उसकी कटि से पृथ्वी पर गिरा हुआ काला अधोवस्त्र हो ॥३६॥
प्रिये । इस श्यामल ताल के पेड को और उज्ज्वल फूलो से लदे इस कदम्ब को देखो। इधर लताओ से सुन्दर वन और मल एव ताप को हरने वाली इन दर्शनीय वावडियो को देखो ॥३७॥
' प्राणप्रिये । इस सनातन जिन-चैत्य को, जिसका पवित्र जल पाप तथा मल को दूर करने वाला है देखो और अपने विशाल नेत्रो का फल प्राप्त करो ॥३८॥
जिसके मनोहर वृक्षो से युक्त भद्रशाल नाम से प्रसिद्ध वन मे विद्याधर अपनी प्राणप्रिया को इस प्रकार नयी-नयी वस्तुएँ दिखाते हुए घूमते हैं ॥३९॥
___जिस पर शोभाशाली कल्पवृक्षो की पक्तियो से युक्त तथा चन्दन वृक्षो से आनन्दित करने वाले नन्दन नाम के अन्य वन को देख कर वह स्त्री भी हस कर अचानक अपने प्रेमी से बोलने लगी, जो पहले लज्जा तथा नीति के कारण नही बोलती थी ॥४०॥
जो, ऊँचे सनातन जिन मन्दिरो में नाचती हुई देवानामो के चरणो की पायजेवो के गम्भीर शब्द से मानो वहां आए हुए सौम्गाकृति चारणमुनियो । को उनके सुख और स यम का समाचार पूछता है ॥४१॥