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नेमिनाथमहाकाव्यम् ] प्रथम सर्ग
[ ७७ वह अकेला भी ममूचे संसार को जीत लेता था, सेना के साथ होने पर तो कहना ही क्या ? शेर अकेला भी बलवान होता है, कवच पहनने पर तो बात ही क्या ॥४॥
उस प्रचण्ड राजा के अभ्युदय को प्राप्त होने पर (सिंहासनासीन होने पर) अन्य राजा इस प्रकार परास्त हो गये जैसे सूर्य के उदित होने पर नक्षत्रों का तेज नष्ट हो जाता है ।४६।
उस न्यायी के राज्य में विवाह में पाणिपीडन होता था, नगरवासी करो (टैक्सो) से पीडित नही थे १५०
वह तीनो वर्गों ( धर्म, अर्थ, काम ) की सिद्धि मे, उनमे आपस मे बाधा न डालता हुआ, ऐ मे प्रवृत्त हुआ जैसे तीनो लोको के निर्माण की प्रक्रिया मे ब्रह्मा ।५११
वह वैरी राजाओ के लिये वज्र के समान था किन्तु अपने घरणो के मेवको के लिये कल्पवृक्ष के समान था ।५२॥
न्याय और अन्याय का विचार करने मे वह राजा ही चतुर था। पानी और दूंव को अलग करने मे हम को ही प्रशसा की जाती है ।५३।
वह समस्त नीतियो से शुद्ध तथा समृद्ध राज्य को इस प्रकार भोगता था, जैसे बगवर स्तनो के युगल से युक्त कामिनी की काया को कामी (५४।
त्प एव सौन्दर्य से सम्पन्न उसकी शिवादेवी नामक महमिणी साक्षात् जयलक्ष्मी के समान थी 1५५१
वह कुलीन स्त्रियो मे श्रेष्ठ और पतिव्रताओ मे अग्रणी थी, जैसे बुद्धियों मे पण्डा मति और कलाओ में वाक्कला १५६।
जैसे गंगा अपनी जलधारा से पृथ्वी को पवित्र वनाती है उसी प्रकार उमने शरद् ऋतु के चन्द्रमा के समान (निर्मल) अपने गुणो से धरती को पवित्र कर दिया १५७।