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होगा। किन्तु यदि अनुवाद से उपाध्याय कीतिराज की कविता को कविता को समझने मे तनिक भी सहायता मिनी तो हमारा श्रम सार्थक होगा। भावो के विशदीकरण के लिए ही यत्र-तत्र हर्षविजय की टीका के उद्धरण दिए हैं । आरम्भ मे, एक निवन्ध मे काव्य की गरिमा के मूल्याकन तथा सौन्दर्य के प्रकाशन के उद्देश्य से इसका समीक्षात्मक विश्लेषण किया है । आशा है इससे काव्य रसिको तथा समीक्षको को तोष होगा।
मुझे जैन साहित्य में प्रवृत्त करने का सारा श्रेय शोधाचार्य श्री अगर चन्द नाहटा को है । उन्होने 'कोतिरत्नसूरि और उनकी रचनायें' निवन्ध लिखकर काव्य को गौरवान्वित किया है । इसके प्रकाशन की व्यवस्था मी उन्होने ही की है। महिमा भक्ति ज्ञानभडार की पूर्वोक्त प्रति भी मुझे नाहटा जी के सौन्जय से प्राप्त हुई थी। इन सब उपकारो के प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हुआ मैं यह अथ उन्हीं को समर्पित करता हूं।
फरवरी १६७५
सत्यव्रत
संकेत-सूची
महि०= महिमाभक्ति ज्ञानभडार, बीकानेर की प्रति सं० १५०२ लि. वि० मा० = विजयवनचद्र सूरि जैन न थमाला मे प्रकाशित काव्य का
मटी पत्राकारसस्करण यशो० मा०= यशोविजय जैन ग्र थमाला में प्रकाशित काव्य का संस्करण टीका= काव्य की हर्पविजयकृत टीका