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________________ ( vill ) हो चुका है । पन्द्रहह्वी, मोलहवी तथा सतरहवी ईस्वी शताब्दियो के जैन सस्कृत महाकाव्यो का सागोपाग विवेचन प्रस्तुत लेखक ने अपनी गोध-कृति मे प्रस्तुत किया है, जिसे राजस्थान विश्वविद्यालय ने पी-एच डी उपाधि से सम्मानित किया है । इसी प्रकार कतिपय अन्य ग्रन्यो की भी रचता हुई है। पन्द्रहवी शताब्दी के प्रख्यात खरतरगच्छीय आचार्य कीतिराज उपाध्याय (बाद में कोतिरत्नसूरि नाम से ख्यात)का नेमिनाथमहाकाव्य अपने काव्यात्मक गुणोशेलीको प्रामादिकता,काव्य-रूढियो के विनियोग तया तत्कालीन प्रवृत्तियो के समावेश आदि के कारण जन-साहित्य की महत्त्वपूर्ण रचना है । अतीत मे यह काय्य दो वार प्रकाशित हुआ है, किन्तु अब लगमग अप्राप्त है । हर्षविजय की सरलार्थ प्रकाशिका टीका के साथ नेमिनाथमहाकाव्य विजयधनचन्द्ररि-ग्रन्थमाला के प्रथम पुष्प के रूप में प्रकाशित हुआ था। हर्षविजय की टीका काव्य के चित्रकाव्यात्मक अश को समझने के लिए निस्सन्देह उपयोगी है। परन्तु टीकाकार समीक्षात्मक बुद्धि मे वचित है । उसने काव्य के उपलब्ध पाठ को यथावत् स्वीकार किया है तथा भ्रामक अशो की हास्यास्पद व्यान्या की है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे बहुधा विजयधनचन्द्रमूरि-ग्रन्यमाला में प्रकाशित पाठ को ही आधार बनाया गया है, किन्तु पाठ-शोधन के उद्देश्य से इसका मिलान काव्य की प्राचीनतम हस्तप्रति (सम्बत् १४६५) से यशोविजय जैन ग्रन्यमाला (३८) में प्रकाशित सस्करण तथा कवि के जीवन-काल, सम्वत् १५०२ मे लिखित महिमाभक्ति शान भण्डार, बीकानेर की प्रति से किया है.3, जिसके फलस्वरूप अनेक रोचक २ ॉ० श्यामपाकर दीक्षित तेरहवी-चौदहवी शताब्दी के जैन-सस्कृत महाकाव्य, मलिक एण्ड कम्पनी, जयपुर, सन् १९६६ सम्बत् १५०२ वर्षे श्रीबृहत्वरतरगच्छे श्रीमालवदेशे श्रीमण्डपदुर्ग श्रीमालज्ञातौ वैद्यगोत्रीय सं० रूपामार्या सूया तत्पुत्रेण स गजपतिभुश्रावकेण वाधवपारससहितेन श्रीनेमिजिनेन्द्रचरित वा० लावण्य- . शीलगणिनिदेशेन हरदोखरगणिपठनाय स्वश्रेयोथं लेखितम् । . लिपिकार की अन्त्य टिप्पणी
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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