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छठा परिच्छेद
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रथ मिला । उसमें कोई स्त्री बैठकर अपने मायके जा रही थी । उसने वसुदेवको देखकर अपने आदमियोंसे कहा :" मालूम होता है कि यह प्रवासी ब्राह्मण थक गया है । इसे अपने रथ में बैठा लो !” उसके यह वचन सुनकर उसके आदमियोंने वसुदेवको रथपर बैठा लिया। इससे वसुदेव अनायास एक नगर में पहुँच गये । वहाँ भोजन और स्नानादि से निवृत्त हो, वे एक यक्षके मन्दिरमें चले गये और वहीं उन्होंने सुखपूर्वक वह रात्रि व्यतीत की ।
इधर शौर्यपुरमें चारों ओर यह बात फैल गयी कि, चसुदेवने अभिप्रवेश कर अपना प्राण दे दिया है । यादवों को इस घटना से बहुतही दुःख हुआ किन्तु इसे देवेच्छा मानकर उन्होंने वसुदेवकी उत्तरक्रिया कर दी । वसुदेव यह समाचार सुनकर निश्चिन्त हो गये । उन्हें विश्वास हो गया कि अब कोई उनकी खोज न करेगा। दो एक दिनके बाद वे उस नगरसे विजयखेट नामक नगरको चले गये ।
विजयखेटके राजाका नाम सुग्रीव था। उसके श्यामा और विजयसेना नामक दो कन्याएँ थी । वसु