________________
तीसरा परिच्छेद
अपने शासनकाल में अनेक जिन-चेत्योंकी रचना करायी तथा अनेक वार तीर्थाटन कर अपना जीवन और धन सार्थक किया ।
www.
राजा यह सुनकर बहुत ही
कहा - "धन्य है मुझे, कि मेरे धनीमानी व्यापारी निवास करते हैं ।"
thin
एकदिन राजा अपराजित उद्यानकी सैर करने गये। वहाँ उन्होंने एक धनीमानी सार्थवाहको देखा, जो अपने इष्ट मित्र और स्त्रियोंके साथ वहाँ क्रीड़ा करने गया था। वह उस समय याचकोंको दान दे रहा था और चन्दीजन उसकी विरदावली गा रहे थे । उसका ठाट-बाट देखकर राजा अपराजित चकित हो गये । उन्होंने अपने एक सेवकसे उसका परिचय पूछा। उसने बतलाया - "महाराज ! यह हमारे नगरके समुद्रपाल नामक सार्थवाहका पुत्र है। इसका नाम अनंगदेव है ।" प्रसन्न हुए । उन्होंने राज्य में ऐसे उदार और
अस्तु । उस दिन तो राजा अपने वासस्थानको लौट गये । किन्तु दूसरे दिन वे जब फिर नगर में घूमने निकले तो उन्होंने देखा कि नगरके किसी प्रतिष्ठित पुरुष
}