________________
१८२
-
-
नेमिनाथ-चरित्र 'उनके कानों तक पहुंच जाती है, तब वे कुछ क्षणोंके लिये आनन्दित हो उठते हैं और उनका हृदय आशासे भर जाता है, परन्तु कुछ देरके बाद फिर उनकी आशा 'निराशामें परिणत हो जाती है और वे फिर उसी तरह निराश हो जाते हैं। इसबार आपका विश्वसनीय पता 'पाकर उन्होंने आपको बुला लानेके लिये मुझे भेजा है।
आप मेरे साथ शीग्रही चलिये और अपने माता-पिताकी वियोग व्यथा दूर कर उनके जीवनको सुखी बनाइये ।" ___ दूतके यह वचन सुनकर राजकुमारके नेत्रोंसे आंसू आ गये। उन्होंने कहा :-'मेरे कारण मेरे मातापिताको जो दुःख हुआ है, उसके लिये मुझे आन्तरिक खेद है। चलो, अब मैं शीघही तुम्हारे साथ चलता हूँ।"
इतना कह राजकुमार अपराजित -राजा जितशत्रुके पास गये और उनसे सारा हाल निवेदन किया। राजा जितशत्रने उसी समय उन्हें जानेकी आज्ञा दे दी। 'वे उनसे बिदा ग्रहण कर अपने नगरकी ओर चल पड़े। इसी समय अपनी दोनों पुत्रियोंके साथ विद्याधर भुवनभानु तथा भिन्न-भिन्न वे राजे भी अपनी-अपनी