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नेमिनाथ चरित्र
मुझे भी अब अपनी पराजय स्वीकार कर तुम्हारा आदर करना चाहिये । तुमने यहाँ आकर मुझे स्त्री-वघके पापसे चचाया है, इसलिये मैं तुम्हारा चिरऋणी रहूँगा । वास्तव में तुमने मुझसे युद्ध कर मेरा अपकार नहीं, उपकारही किया है । परन्तु अब मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मेरे बखमें एक मणि और कुछ जड़ी-बूटी बँधी हुई हैं, मणिको जलमें डुबोकर उसी जलसे उन जड़ी बूटियोंको घिस कर लख्मोंपर लगानेसे मैं पूर्ण रूपसे स्वस्थ हो जाऊँगा । दयाकर इतना उपकार और कीजिये, फिर मैं सहर्ष अपना रास्ता लूँगा ।"
यह सुनकर राजकुमारने बड़ी खुशीके साथ विद्याघरका इलाज किया | जड़ीको घिसकर लगाते ही उसके सत्र जख्म अच्छे हो गये और ऐसा मालूम होने लगा मानो कुछ हुआ ही न था । उसे स्वस्थ देखकर राजकुमारने पूछा :- "क्या आप अपना और इस स्त्रीका परिचय देनेकी कृपा करेंगे ?"
विद्याघरने कहा :- "मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं । यदि आप यह सब बातें सुनना चाहते हैं तो सहर्ष सुनिये ।