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तीसरा परिच्छेद सुन्दरी उसके भयसे थरथर काँप रही थी। राजकुमारको देखकर वह पुनः अपनी प्राण-रक्षाके लिये जोरसे चिल्ला उठी। राजकुमारने उसकी ओर आश्वासन भरी दृष्टिसे देखकर उस विद्याधरसे कहा :-- "हे नराधम ! अवलापर हाथ उठाते तुझे लज्जा नहीं आती ? यदि तुझे अपने बलका कुछ भी घमण्ड हो तो मुझसे युद्ध करनेको तैयार हो जा! अब मैं तुझे कदापि जीता न छोडूंगा।"
राजकुमारकी यह ललकार सुनकर पहले तो वह विद्याधर कुछ लजित हुआ, किन्तु इसके बाद उसने कहा :-हे युवक ! मैं नहीं जानता कि तुम कौन हो, किन्तु मैं तुम्हारी चुनौती स्वीकार करता हूँ। मैं समझता हूँ कि तुम्हारी मृत्युही तुम्हें यहॉखीच लायी है और इसीलिये तुमने मेरे कार्यमें वाधा देनेका साहस किया है।"
वस, फिर क्या था ? दोनों एक दूसरेसे भिड़ पड़े। दोनों ही युद्ध विद्यामें निपुण थे, इसलिये एक दूसरेपर अस्त्र शस्त्रका प्रयोग करने लगे। यह युद्ध दीर्घकाल तक होता रहा, किन्तु कोई किसीको पराजित न कर सका। अन्तमें वे दोनों अस्त्र शस्त्र छोड़कर भुजा-युद्ध करने लगे।