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तीसरा परिच्छेद
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करते गये, त्यों-त्यों उनका वैराग्य प्रवल होता गया । फलतः उन्होंने पुरन्दर नामक अपने बड़े पुत्रको राज्यभार सौंपकर दमघर नामक आचार्यके निकट दीक्षा ले ली | रत्नवती तथा उनके दोनों लघु बन्धुओंने भी उनका अनुकरण किया। चित्रगतिने दीर्घकाल तक चारित्र पालन कर अन्त में पादोपगमन अनशन किया, जिसके फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो गयी । मृत्यु होनेपर माहेन्द्र देवलोक में वे महान देव हुए । उनके दोनों छोटे भाई और रनवतीको भी देवत्व प्राप्त हुआ। वे सब वहाँ पर स्वर्गीय सुख उपभोग करने लगे ।
तीसरा परिच्छेद
पाँचवाँ और छठा भव
पश्चिम महा विदेहके पत्र नामक विजय में सिंहपुर नामक एक नगर था । वहाँ हरिनन्दी नामक राजा राज करता था । उसकी रानीका नाम प्रियदर्शना था ।
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