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भूमिका
जैन शास्त्रोंमें ज्ञानका जो अटूट खजाना भरा पड़ा है । उसके चार हिस्से किये गये हैं । द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, कथानुयोग और चरितानुयोग |
द्रव्यानुयोग दर्शनको कहते हैं, इससे बलुओंके बालविक स्वरूपका भली-भाँति ज्ञान मिलता है। दूसरा चरितानुयोग है, - इसमें महत् पुरुषोंके जीवन चरित्र और उनके द्वारा प्राप्त होनेवाली शिक्षायें मरी हुई हैं। तीसरा गणितानुयोग है, इसमें गणित और ज्योतिपके समूचे विषय भरे हुए हैं। और चोथा चरण करणानुयोग कहलाता है, इसमें चरण सत्तरी और करण सत्तरीका विवेचन और तत्सम्बन्धी विधियाँ दी गयी हैं।
इस प्रकारके प्रन्थों से अल्प सकते हैं। इसीसे प्राचीन प्रन्थ रच डाले
प्रस्तुत प्रन्य चरितानुयोगका है। बुद्धि मनुष्य भी एक समान लाभ ले कालके यति और चाचार्योंने कथानुयोगके अनेक 1 प्रस्तुत ग्रन्थ भी उसी ढंगका है। इसमें भगवान नेमिनाथ स्वामीके चरित्रके अतिरिक्त कृष्ण, बलराम, वसुदेव, कंस, जरासन्ध, देवकी, रुक्मिणी- सत्यभामा और राजिमती प्रभृतिका भी चरित्र अंकित किया गया है। जो हरएक मनुष्य के पढ़ने सुनने और मनन करने योग्य है।
प्रस्तुत प्रन्थके मूल लेखक गुणविजयजी हैं, जिन्होंने इस