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एकसया परिच्छेद भी अभ्यास किया। कुछ दिनोंके बाद उन्हें नेमि भगवानको वन्दन करनेकी इच्छा उत्पन्न हुई, इसलिये वे पृथ्वी पर विचरण करते हुए नेमि भगवानके प्रवास. स्थानकी ओर विहार कर गये।।
उस समय नेमिभगवान मध्य देशादिमें विहार कर उत्तर दिशामें राज-गृहादिक नगरोंमें विचरण कर रहे थे। वहाँसे हीमान पर्वत पर जा, अनेक म्लेच्छ देशोंमें विचरण कर भगवानने वहाँके अनेक राना तथा मन्त्री आदिको धर्मोपदेश दिया। इस प्रकार आर्य-अनार्य देशका भ्रमण समास कर वे फिर हीमान पर्वत पर लौट आये । वहाँसे वे किरात देशमें गये। इसके बाद हीमान. पर्वतसे उतर कर उन्होंने दक्षिण देशमें विचरण किया। इस प्रकार केवल ज्ञानकी उत्पत्तिसे लेकर इस समय तक उनके धर्मोपदेशसे अठारह हजार साधु, चालीस हजार सानियाँ, ४१४ पूर्वधारी, १५०० अवधिज्ञानी, १५०० वैक्रियलन्धिवाले और केवल ज्ञानी, १००० मनःपर्यवज्ञानी, ८०० वादी, १ लाख ६६ हजार श्रावक तथा ३ लाख ४६ हजार श्राविकाएँ हुई।