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नर्षिनाक-चरित्र पर एक ही अपने बालककें साथ जल भरने आयी थी। बलरामका अलौकिक रूप देखकर उसका चित्त अस्थिर. हो मया और वह घड़ेके बदले उस बालकके गलेमें रस्सी बाँधकर, उसे उस कुएंमें डालने लगी। उसका यह कार्य देखकर बलराम अपने मनमें कहने लगे :-"अहो । मेरे इस रूपको धिक्कार है, कि जिसको देखकर इस अबलाके चित्तमें चंचलता उत्पब हो गयी है। अब आज से मैं किसी भी ग्राम या नगरमें प्रवेश न करूँगा और वनमें काष्टादिक लेनेके लिये जो लोग आयेंगे, उन्हींसे भिक्षा मॉगकर वहीं पारण कर लिया करूंगा। ऐसा करनेसे भविष्यमें किसी प्रकारका अनर्थ तो न होगा।"
इसके बाद उस स्त्रीको उपदेश देकर बलराम वनको चले गये और वहाँ पुनः मास क्षमणादिक दुस्तप तप करने लगे। पारणके समय तृण काष्टादिक संग्रह करने. वाले उन्हें जो कुछ दे देते, उसीसे वे पारण कर लिया करते थे इससे उनके चित्तको परम सन्तोष और शान्ति मिलती थी। ., कुछ दिनोंके बाद तृण काष्टादिक संग्रह करनेवालोंने